ग्रामीण
नरेश जयरामजीकी ने करोडो रूपये के अनुसंधान के बाद निर्मित पर्यावरण हितैषी
मलत्याग केंद्र “ईटाईलेट” को लांच करते समय अपनी गाँधीवादी विचारधारा को उत्सर्जित
करने का मोह त्याग नहीं पाये और कह डाला कि देश के
लिए मल त्याग केंद्र अग्नि मिसाइल छोड़ने से ज्यादा जरूरी हैं। देश में साफ-सफाई
की समस्या दूर नहीं की जाती तो अग्नि मिसाइल दागते रहने का कोई अर्थ नहीं है।
इसलिए रक्षा बजट के बराबर इसका भी बजट रखा जाय और पर्यावरण
मित्र मलत्याग केंद्र का नाम “बापू” रखा जाय । वो तो गनीमत है कि उन्होने ये नहीं
कहा कि आईपीएल मे भी काफी रकम खर्च होती है इसलिए उसका भी नाम बीपीएल अर्थात बापू
प्रीमियम लीग रखा जाय । चेला भोलाशंकर ने बताया कि सोच तो वो इसके लिए भी रहे थे
लेकिन हमारे देश में बीपीएल का खेल पहले से ही चालू है और इसे खेलने का नैतिक
अधिकार सिर्फ गाँधीवादियों के पास है इसलिए देश हित में विचार त्याग दिया ।
खैर मेरे
मित्र उँगलबाज को जैसे ही पता चला कि मैं उसके शहर में ही हूँ, आदतन उँगली करने चला आया । बोला- जयरामजी की महाराज , ई बापू मलत्याग केंद्र वाला क्या मामला है ? कल राम
नरेश ने कहा कि गाँधी जी भी इसके पक्षधर थे । मैंने कहा देखो उँगलबाज, राम नरेश जी का गोरा चौड़ा माथा है और सफेद बाल भी हमेशा खड़े रहते हैं इसका
सीधा और साफ अर्थ ये है कि वे बुध्दिजीवी और चिंतनशील व्यक्ति है। ये मामला जितना सीधा दिखता है उतना है नहीं ।
मैं पहले तो ये बता दूँ कि गाँधी जी सामाजिक समरसता के पुजारी थे, सो वे सपने में भी मल त्याग केंद्र का समर्थन नहीं कर सकते । हाँ ये बात
अलग है कि चूँकि मल त्याग केंद्र निर्माण में भारी रकम
खर्च होगी इसलिए परम्परा का पालन करते हुए इसका नामकरण बापू के नाम
पर करना चाहिए लेकिन अगर बापू जिंदा होते तो मेरी तरह ही इसका घोर विरोध करते ।
हालांकि नैतिक रूप से देखा जाय तो ये गाँधीवादी नेता बापू के नाम पर देश का खा-खा
कर इतना मल त्याग चुके हैं कि अब नाम ना भी दें तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।
लेकिन उँगलबाज ये मामला राजनैतिक
से ज्यादा सामाजिक महत्व का है । सर्वप्रथम तो ये कि मल त्याग केंद्र व्यक्ति को
नैसर्गिक जीवन जीने में बाधा उत्पन्न करती है । हरी हरी दूब घास पर स्वच्छंद और
मुक्त वातावरण में मल त्याग करने वाले ग्रामीण जनजीवन को नष्ट करने की गहरी चाल है
और जैविक स्वदेशी खाद को एक जगह इकठ्ठा करने की बहुराष्ट्रीय पूँजीवादी साजिश ।
सोचो अगर ये मल एक स्थान पर एकत्रित होने की जगह खुले मैदान में सीधे त्यागे जाते
तो उससे जो स्वदेशी खाद निर्माण होता वह समान रूप से सार्वजनिक हित में झाड़ियों
में बिना किसी भेदभाव से फैल जाता और उससे पोषित होकर झाड़ियाँ हरे-भरे वृक्ष मे
रूपांतरित होकर ऑक्सीजन देते जो हर, अमीर-गरीब को
बिना किसी भेदभाव से उपलब्ध होता । मल त्याग केंद्र बनने से ये सारे मल एक ही जगह
इकठ्ठे होंगे और जब ये मल स्वदेशी खाद में बदल जायेगा तो फिर पूँजीवादी सरकार इसे
सफाई के नाम से इकठ्ठी कर इस बेशकीमती जैविक खाद को कोल ब्लाक, 2 जी स्पेक्ट्रम और गैस बेसिन के जैसे ही किसी पूँजीपति उद्योगपति को उसके
फार्म हाऊस के लिए कौड़ियों के मोल बेच देगी । फिर वो उद्योगपति गरीबों के ही खाद से
पौधे को पोषित कर ऑक्सीजन का निर्माण कर मनमाने दाम पर उसे बेचेगा । जिससे गरीब अपने हिस्से के ही नैसर्गिक ऑक्सीजन
से वंचित होकर उसे खरीदने को मजबूर हो जायेगा ।
लेकिन सबसे गहरी और विचारणीय बात
तो ये हैं कि ये मल त्याग केंद्र शत प्रतिशत सवर्ण मानसिकता का परिचायक है और आज
जो सामाजिक असमानता की खाई है इसका मूल जड़ ये मल त्याग केंद्र ही है । ये कोई छोटी बात नही है, बड़े बड़े आलीशान महलों में निर्मित सर्वसुविधायुक्त मलत्याग केंद्रों में चैन
से मल त्याग करने की मनुवादी सामंती इच्छा ने ही मैला ढोने वाले दलित पैदा किये। मनुवादी
सोच के पूँजीवादी सवर्ण अगर अपने कोठियों में बने वातानूकूलित मल त्याग केंद्र मे
मल त्याग करने की राजसी प्रवृत्ती त्याग देते तो आज बहन मायावती की मूर्तियाँ किसी
खेत मे लोटा लेकर बैठी होती और पासवान सवर्ण स्त्री के साथ दूसरी शादी कर मस्ती में
जीने के बजाय अपनी पहली दलित पत्नी के साथ गृहस्थ होते । जब दलित ही न होता, छुआछूत ही न होती तो ना तो भारत कमजोर होता ना ही मनुवादी सोचवाले दलित नेता
पैदा होते । ये मल त्याग करना गहन राष्ट्रीय शोध का विषय है । आश्चर्य की बात है
कि मोहनजोदड़ो की खुदाई की सारी बाते सामने आयी पर वहाँ स्नानागार तो मिलते हैं लेकिन
मलत्याग केंद्र का कोई उल्लेख नही मिलता । उस समय लोग इन सब मनुवादी प्रवुत्तियो से
उपर थे और समाज में समरसता थी ।
दरअसल जिसे हम सभ्यता का विकास कहते हैं वो मूल रूप
से मल त्याग करने की विभिन्न विधाओं का विकास है । ज्यूँ ज्यूँ मल त्यागने की भिन्न
भिन्न नवीन आधुनिक सुविधाओं का विकास हुआ समाज में असमानता की खाई बढ़ने लगी । क्या
अगड़ी जाति और क्या पिछड़ी जाति सभी पूँजीवादी सामंती लोग, जिसे भी मौका मिला वो अपनी सुविधानुसार मलत्याग केंद्र का निर्माण कर मल त्यागने
लगे और धीरे धीरे वो सारा मल एक जगह इकठ्ठा होकर देश की आम गरीब जनता के उपर मँहगाई
और भुखमरी के रूप में परिवर्तित हो गया है । अब अपने मोंटू चाचा को ही देख लो, पैंतीस लाख के मल त्याग केंद्र में बैठकर गरीबों और पिछड़े लोगों को अमीर बनाने
के लिए योजना बनाता है और जादू की छड़ी घुमाकर रातों रात सभी को 32 रू वाला अमीर बना
देता है ।
इसलिए सर्वप्रथम तो ये मनुवादी सवर्ण मानसिकता वाले
मल त्याग केंद्र बनाने की पूँजीवादी सोच का सभी को संगठित होकर विरोध प्रदर्शन
करना चाहिए । बापू ने स्वच्छता के साथ स्वालम्बन का भी सपना देखा था इसलिए “ईटाईलेट”
को देश की जनता पर थोपने के बजाय सभी लोगों को अपनी सुविधानुसार मल त्याग करने का अधिकार
मिलना चाहिए और ये सुनिश्चित होना चाहिए कि किसी का भी मल देश पर बोझ ना बने और मल
से बनने वाले खाद का लाभ सर्वजन हित में बराबर वितरित हो । इस देश में गरीबों का
भी बराबर का हक है । देश के सभी संसाधनों पर
उनका भी बराबर का अधिकार होना चाहिए इसलिए उन्हे अपने स्व निर्मित जैविक खाद के उपयोग
करने का अधिकार मिलना ही चाहिए और इस हेतु वे किस प्रकार के मलत्याग केंद्र बनायें
इसका भी उन्हे ही निर्णय करने का अधिकार होना चाहिए, तभी सही मायनो में
बापू के सपने पूरे होंगे वरना शौचालय में लगे बापू के नाम की तख्ती से केवल सड़ांध ही
आयेगी स्वराज नहीं ।
इसका नाम गोड़से के उपर रखा जाये त हमारा समर्थन होगा :) :) :)
जवाब देंहटाएंअब ई तो गाँधीवादियों के हाथ में है अगर उ तैयार हो जाये तभे मुमकीन है
हटाएंहा हा हा हा , "गांधी मल त्याग केन्द्र " सही है , वैसे भी गांधी ने काफी मल त्याग किया है लेकिन अपने जैसे गांधीवादी ... जो आज भी यत्र तत्र मांगे पूरी कर रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंगाँधी ने जो मल त्याग किया है वो तो कमोबेश अब तक खाद भी बन गया होता पर गाँधीवादी लोग उस मल में पानी डाल डाल तक उसे मल रूप में ही सहेजकर रखे हुए है और उसकी आड़ में अपना मल त्याग कर रहें हैं
हटाएंधन्य हो महाराज, मल की इतनी विवेचना, आप धन्य हैं, अवश्य ही आप पीपली लाइव से प्रभावित हैं, जहां मल की जांच व्यक्ति की मनोस्थिति निर्धारण हेतु करने की बात की जा रही थी
जवाब देंहटाएंहमें तो मात्र इतना समझ आया कि इस गांधी केंद्रित विदेशी शासन व्यवस्था में मल त्याग केन्द्र वास्तव में मिसाइलों से अधिक उपयोगी और आवश्यक है, क्योंकि गांधीवादी इस विदेशी शासन में, गांधी मलत्याग केन्द्र ही संकट काल में, शरण लेने हेतु उपयुक्त होंगे, सत्य तो यह है कि ये जय राम रम ईश जैसे लोग ही थे जिनके कारण राष्ट्र ने अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं की थी फलतः सदियों तक गुलामी झेलने को विवश रहा, पुनरावृत्ति हो जाए तो अवाक् मत होइएगा
वाह वाह क्या संधि विच्छेद किया है गजब .. जय राम रम ईश .. मुझे अगर पहले बताते तो ये नाम सटीक बैठता
हटाएंमल त्याग केंद्र ............जय जय संजयजी आपने झकास पञ्च मारा है ..शौचालय पर अच्छी सोच प्रस्तुत की है आपने अब ये अलग बात है की सर्कार इस शौच पर क्या सोचती है ....वास्तव में ये तथाकथित शौचालय "नेताओं " ,"गैर सरकारी संस्थाओं "और सरकारी लोगों की तिजोरी में बन रहे हैं .......ये खालिस पिला सोना है पर इसके लिए खुले स्तर पर विचार होना चाहिए......वैसे खुले में मल विसर्जन के कुछ लाभ..... १.प्रत्येक इंसान मल त्यागने के दौरान साल भर में करीब दो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है...... इस प्रक्रिया में में उत्पन अपान वायु तीव्र वेग से बाहर आती है .....मेरा पडोसी भोलाराम बेचारा इसी बोम्ब ब्लास्ट के कारन के कई बार शौचालय से बिना मल विसर्जन के शर्म के मारे बाहर आ जाता है ......खुले में ऐसी कोई समस्या नहीं है....
जवाब देंहटाएं२. गरीब मल सेप्टिक टैंक में जमा कर ले और बाद मे नगर निगम में फ़ीस जमा कर उसको फ़ेकवाने का इंतजाम करे। फ़िर इस सरकार के आगे रसायनिक उर्वरक के लिये गिड़गिड़ाये। ...ये कहाँ का न्याय है
३. दूरस्थ स्थान पर मल टपकाने की प्रक्रिया में जाने के दौरान शारीरिक व्याम से मल विसर्जन आसानी से होता है...जबकि घर के सेप्टिक टेंक में मल विसर्जन के लिए ..........अनुलोम विलोम .या फिर कपाल भांति की कुछ क्रियाएं करनी होती है...........
४. खुले में मल विसर्जन के लिए प्राकृतिक वायु खुला वातावरण ..जबकि ये सब बंद शौचालय में नदारद है.....इसलिए आपका ये कहना सही है की उन्हें ही निर्णय करने का अधिकार होना चाहिए की उनके लिए क्या उचित है .........