दिन मंगलवार 3 जुलाई 12, यात्रा को लेकर रोमांचित
था । अजय डांगे भाई और हेमंत नायडू जिसे मैं सेनापति भी कहता हूँ, ने सारे इंतजाम कर रखा था। उन्होने ही बताया था कि ट्रेन में आरक्षण दो
महीने पहले से कराने पर भी वातानूकूलित बोगी का केवल वापसी टिकट ही कंफर्म हुआ
अर्थात रायपुर से जम्मू तक का सफर थ्री टियर पर ही करना था । खैर वैसे भी जब
परिवार साथ ना हों और दोस्तों की चौकड़ी हो तो मुझे थ्री टियर में सफर करना ही
अच्छा लगता है । भारत दर्शन का आनंद इसी बोगी में ही आता है और यहाँ तो पूरी
क्रिकेट टीम थी मतलब पूरे 11 की फौज । टिकट सारी दुर्ग से थी लेकिन टीम के सदस्यों
की बोर्डिंग अलग अलग स्थानों से । अजय भाई , सेनापति , सेनापति के छोटे भाई संतोष नायडू , प्रकाश डहाके भाई
, हुकुम चंद और मिठाई लाल कुल सात यात्री दुर्ग से सवार होकर
निकले और मैं और दंतेवाड़ा से मेरा एक और साथी संतोष जायसवाल रायपुर से । ट्रेन
अपने स्वाभाव के बिल्कुल विपरीत निर्धारित समय 12:35 पर
पहुँची और मैं उस पर विश्वास कर प्लेटफार्म पर 12:40 को । वो तो डिपार्चर में जरा
लेट हो गया वरना ट्रेन के यूँ अचानक अपने लेट आने के स्वभाव को त्यागना मेरे लिए
भारी पड़ सकता था । खैर मंगलवार होने के कारण केवल शुध्द मिनिरल वाटर की एक पेटी
लेकर हम बोगी क्रमांक S-8 में सवार हुए । ट्रेन कुछ अनमने ढंग से दो बार
चैन पुलिंग का शिकार होकर स्टेशन से बाहर अंतत: निकल ही पड़ी ।
चूँकि हमारी आरक्षित सीटें भी पूरी बोगी में एक आम भारतीय के सुख चैन की
तरह यहाँ वहाँ छितरी पड़ी थी किंतु सेनापति ने अपनी भारतीय जुगाड़मेंट कौशल का
प्रदर्शन करते हुए सहयात्रियों को ऐसा मैनेज किया कि बिलासपुर आते आते हमारी आठ
सीटें एक साथ ही एक ही कम्पार्टमेंट में समायोजित हो गईं थी अर्थात अब 3-4 जुलाई
को अस्थायी पता था - सीट क्रमांक 65 से 72, बापू चलित
मलत्याग केंद्र के बाजू में, बोगी क्र.S-8, दुर्ग जम्मूतवी
एक्सप्रेस, भारतीय रेल । लेकिन S-1 बोगी की तीन टिकटें कस्टम में फँसे माल की तरह
रह गईं । वैसे उस सीटों के उत्तराधिकारी हुकुम चंद और मिठाई लाल भी दिल से नहीं
चाहते थे कि वे अजय डाँगे जैसे सुरा सुंदरियों के घोर विरोधी लोगों के साथ सफर कर
अपना मजा खराब करें इसलिए उन्होने हमें अपना चेहरा जम्मू में ही दिखाना निश्चित
किया था और मैं पहली बार जम्मू में ही उनके दर्शन कर पाया ।
बिलासपुर पर हमारे दो सहयात्री आशीष और मनमद ने भी अपनी आमद दी जो रायगढ़
में कार्यरत हैं । मनमद, सेनापति और उसके भाई संतोष दोनो के लिए खुदाई से
भी बढ़ कर है मतलब वो दोनों के जोरूओं का भाई है। यहाँ भ्रम ना रखें सेनापति और
उनके भाई की पृथक-पृथक और निजी जोरू है और दोनो ही रिश्ते में मनमद की बहने हैं।
अब सफर में कुल जमा 10 यात्री सवार हो चुके थे । एक यात्री का कटनी से शामिल होना
शेष था, देवेंद्र पटेल जिसे सब डीके कह रहे थे और वह पेशे से सतना में फलों के थोक
व्यापारी हैं। बिलासपुर से गाड़ी छूटने के बाद मैने सेनापति से पूछा ताश की गड्डी
लाये हो ? हर सवाल पर हाँ जवाब देने वाले ने सेनापति ने इस बार ना ऐसे कहा जैसे उसने
कोई बड़ी भारी भूल कर दी । लेकिन संयोगवश
उसी वक्त डीके का फोन आया कि फलों की टोकरी रख ली है और कुछ रखना है तो कहो । फौरन
सेनापति ने अपनी गलती को सुधारने के उद्देश्य में आदेश दिया ताश की गड्डी हर हाल
में चाहिए । खैर पेंड्रा रोड पर गाड़ी किसी
क्रासिंग के उद्देश्य से रूकी हुई थी तभी मेरे कैमरे को ये दो चेहरे दिखाई दिये
जिसे उसने कैद कर लिया ।
गाड़ी कटनी पर जब पहुँची तो डीके अपने खाद्य टोकरी के साथ शामिल हुआ और वहाँ
आशीष के कुछ रिश्तेदार भी मिलने आये। वे भी अपने साथ परम्परागत भोज्य पदार्थों की
सौगात लाये हुए थे । अब हमारे पास खानेपीने का इतना स्टॉक था कि कोई गुजराती या
सिंधी परिवार भी देखता तो शर्म से पानी पानी हो जाता ।
अजय भाई, संतोष जायसवाल और सेनापति को छोड़्कर शेष सभी सहयात्रीयों से मेरी पहली
मुलाकात थी। खैर इधर उधर के गपबाजी में रात घिर आई और बोगी में अनधिकृत किंतु
आरक्षण ना मिलने से भी यात्रा को मजबूर लोगों की भीड़ इस तरह थी जैसे उनके जीवन में
बस यही एक मात्र गाड़ी हो । हमारी सीट के नीचे ही छ लोग फर्श पर पेपर बिछा कर ऐसे
सोये हुए थे जैसे उन्होने कोई जंग जीत ली हो । केवल हमारी ही नहीं पूरी ट्रेन का
यही हाल था जिसमें जम्मू और पंजाब में मजदूरी करने वाले लोगों की बहुतायत थी । भारतीय
रेल अपने देश की जनसंख्या की पूरी अनूभूति करा रही थी । अपनी ही बोगी में आपातकालीन
लघु या दीर्घ शंका को दूर करने निर्धारित केंद्र तक जाना पाकिस्तान से सबरजीत की
रिहाई से कम कठिन काम नहीं था । लेकिन इतनी भीड़ में भी टीटी और चाय वाले बड़ी आसानी
से चहल कदमी कर रहे थे । आखिर दोनों को अपना निजी व्यवसाय जो चलाना था ।
किसी तरह सुबह हुई लेकिन जब उठकर
देखा तो बोगी के दायें और बायें दोनो चलित बापू केंद्रों में 72 मूल निवासी जनता
(यात्रियों) के हिस्से का पानी किसी उद्योगपति की तरह इन अनारक्षित लोगों ने आधी रात
को ही उपभोग कर दिया है सो हमारे पास विभिन्न धुलाई के कार्यक्रम सम्पन्न करने का
केवल एकमात्र विकल्प था किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी की शील बंद उत्पाद का उपयोग किया
जाय । खैर सबने दंत मार्जन कर अल्प जल से मुखमण्डल को स्वच्छ किया और मल उत्पादन क्रिया
को लोकपाल बिल की तरह किसी स्टेशन पर जल आपूर्ति होने तक लटकाये रखा । भारतीय रेल
का थ्री टीयर शयनयान ही एकमात्र स्थान है जहाँ परम्परा अनुसार अनधिकृत व्यक्ति, अधिकृत
व्यक्तियों के हिस्से की जमीन, पानी और हवा का शोषण तो करता है किंतु बड़ा अंतर
ये है कि यहाँ शोषित, शोषक से अपेक्षाकृत अमीर और सम्पन्न होता है ।
अगले दिन यानी 4 जुलाई के प्रात:10 बजे दिल्ली स्टेशन तक पहुँचते पहुँचते
सभी लोगों ने उदर से आदान प्रदान की क्रिया सम्पन्न कर ली थी । दिल्ली में कुछ भीड़
कम हुई तो सांस लेने की जगह बनी, अब समस्या थी पूरा दिन काटने की । कल तक जो
अनारक्षित चेहरे बार बार चिढ़ पैदा कर रहे थे वे चौबीस घण्टे में कुछ अपने से लगने
लगे सो उन्हे भी थोड़ी थोड़ी जगह देकर लोगों ने किसी विवाह भोज के पकवान की तरह
एडजस्ट किया । सेनापति ने आदेश फरमाया चलो ताश खेला जाय वो भी चौरंगा, दस रूपये बोट के
हिसाब से कलमाड़ी गेम्स प्रारंभ हुए । प्रकाश बाबू इसमें चैम्पियन निकले और पहले ही
दौर में उन्होने 120 का कमीशन कमा लिया और हम तीन लोगों पर मानसिक दबाव बनाने लगे
। दोपहर के भोजन अवकाश के ठीक पूर्व हमें किसी ने गुप्त संदेश सुनाया कि आपके लिए
रूसी मूल की सुरासुंदरी जो श्वेत जलधारा सी रंगहीन और निर्मल होती है, की व्यवस्था कर
रखी गई है । भोजन पूर्व उसके उपभोग से
हमें मानसिक बल मिला और हम दूसरे दौर में प्रकाश बाबू पर हावी होकर ना केवल सारा
कर्जा उतारा बल्कि उन पर पूरे 10 रू का कर्जा चढ़ा दिया ।
प्रकाश बाबू बड़े अनोखे और सच्चे इंसान हैं । मैंने अपने जीवन में उन जैसा
व्यक्तित्व बहुत कम ही देखा है। उनमें अचानक ही बच्चों जैसा चरित्र नजर आयेगा और
पल में ही वे बदल कर एक संजीदा परिपक्व व्यक्तित्व के मालिक हो जाते हैं। वे भिलाई
स्टील प्लांट में कार्यरत हैं और हुडको भिलाई में विराजित होने वाले शहर के सबसे
बड़े गणपति पण्डाल के अध्यक्ष भी हैं । उनके साथ हंसी ठिठौली करने का अपना ही एक
मजा है मैने पूरी यात्रा के दौरान उन्हे नाराज होते कभी नहीं देखा ।
पटियाला स्टेशन पर दो युवतियाँ हमारे पास आकर बैठ गईं और इंडियन आईडल के
प्रतिभागी की तरह गाना सुनाने लगी । मैं भी सुर ताल से अंजाना अनुमलिक की तरह उनके
गाने सुनने लगा लेकिन उन्होने कामेंट्स के बदले रूपयों की माँग की । उन्हे उनका
मेहनताना देकर विदा ही किया था कि सेनापति ने बताया कि ये गायिकायें दरअसल इण्डियन
आईडल नहीं, बिग बास की सनी लियोने हैं और आपको ऐसी कई लियोने चक्की बैंक तक मिलेंगी।
चक्की बैंक जम्मू से पहले आने वाला स्टेशन है ।
यहाँ शाम घिर आई थी और गाड़ी किसी क्रासिंग के इंतजार में खड़ी थी। हमने सोचा चलो कुछ तस्वीरें मिल जायेंगी लेकिन भीड़ में कोई उम्दा तस्वीर दिखाई नहीं दी । ढलती शाम को हमने अपनी ही तस्वीर उतारी, इतने में पेण्ड्रा रोड पर जिस बाबा की कैण्डिड तस्वीर उतारी थी वो अचानक दिखाई दे गये । मैं उनके साथ अपनी एक तस्वीर खींचवाने का आग्रह किया और वो इसके लिए तैयार भी हो गये । अंतत: ट्रेन ने सकुशल हमें अपनी मंजिल तक पहुँचाया । जिस प्लेट्फार्म पर वो रूकी उस स्टेशन के बोर्ड पर जम्मू तवी तीन भाषाओं हिंदी , उर्दू और अंग्रेजी भाषा में अंकित था
क्रमश: भाग 2
यहाँ शाम घिर आई थी और गाड़ी किसी क्रासिंग के इंतजार में खड़ी थी। हमने सोचा चलो कुछ तस्वीरें मिल जायेंगी लेकिन भीड़ में कोई उम्दा तस्वीर दिखाई नहीं दी । ढलती शाम को हमने अपनी ही तस्वीर उतारी, इतने में पेण्ड्रा रोड पर जिस बाबा की कैण्डिड तस्वीर उतारी थी वो अचानक दिखाई दे गये । मैं उनके साथ अपनी एक तस्वीर खींचवाने का आग्रह किया और वो इसके लिए तैयार भी हो गये । अंतत: ट्रेन ने सकुशल हमें अपनी मंजिल तक पहुँचाया । जिस प्लेट्फार्म पर वो रूकी उस स्टेशन के बोर्ड पर जम्मू तवी तीन भाषाओं हिंदी , उर्दू और अंग्रेजी भाषा में अंकित था
क्रमश: भाग 2
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जवाब देंहटाएंसंजय भाई आपनी भाषा भी अच्छी है और संस्मरण आप जीवंत लिखते हैं जैसे सामने घट रहा हो। बहुत अच्छा लगा पढ कर और अगली कडियों की प्रतीक्षा हो गयी। तस्वीरें भी अच्छी लगायी हैं।
जवाब देंहटाएंमस्त संजय भाई....आपकी शैली ने संस्मरण की विशिष्टता बढ़ा दी
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