मीडिया पर प्राईम टाईम पर प्रायोजित चिंतन शिविर नुमा बहसचर्चा में एक उँचे मकान के उत्तरी दिशा में सटकर बनी झोपड़ी का दोपहर में फोटो खींचकर एक बुद्धजीवी मय सबूत दलील दे रहे थे " देखो कैसे इन अमीरों ने देश के गरीबों के हक छीन कर रखा हुआ है । रोटी तो पहले से ही छीन ली अब तो सूरज की धूप भी अपने कब्जे में कर झोपड़ी तक पहुँचने नहीं देते । "
इधर कई मजदूर संगठन इसके लिए आन्दोलन को तैयार हो
भारत बन्द का ऐलान कर दिया । लोग उस झोपड़ी के बाहर प्रदर्शन को पहुँचने लगे।
इस बीच तीन हृदयरोगी प्रदर्शनकारी मीडिया कैमरे के सामने अपना चेहरा दिखाने की
जद्दोजहद में हार्टअटैक आने से निपट गये । बाद में विपक्षियों ने इसे पुलिस और
सरकार की बर्बरता घोषित कर उनके बलिदान को नमन किया और शहीद का दर्जा दिया गया । इधर बनाना आजमी ने अपना जन्मदिवस स्लम डे के रूप में मनाने के लिए स्पेशल डिजाईन का केक बनवाया ।
इन तमाम घटनाओं से उस गरीब की झोपड़ी यकबयक मीडिया आकर्षण की केन्द्र हो गई थी और वो झोपड़ी का मालिक रातों रात "नत्था" बन गया ।
इन तमाम घटनाओं से उस गरीब की झोपड़ी यकबयक मीडिया आकर्षण की केन्द्र हो गई थी और वो झोपड़ी का मालिक रातों रात "नत्था" बन गया ।
आन्दोलन से उपजे बवाल के कारण “प्रशासन” ने “शासन”
की कुर्सी की बचाने उँचे मकान की कुर्बानी लेकर उसे जमींदोज कर दिया । इस तरह
"सत्य" की असत्य पर विजय हुई ।
देश भर के सभी बड़े शहरों के व्यस्ततम चौक
चौराहों पर “जागरूक” नागरिकों द्वारा मोमबत्ती की एक बड़ी खेप जलाकर उत्सव मनाया
गया । थूक कर बोलने वाले बख्तर साहब और खुजलीवाले कामेश भट्ट जैसे जाने माने समाज
सेवकों ने इसे धर्म की अधर्म पर जीत घोषित करते हुए असली दशहरा मनाने की अपील की ।
आश्चर्यजनक रूप से इस घट्ना पर खुजलीवाल
की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई । बाद में पता चला कि मकान मालिक “कबीर” का अन-ऑफिसियल स्पांसर था ।
कई दिनों बाद एक नवजवान उत्साही स्वतंत्र
पत्रकार उस झोपड़ी के मालिक का साक्षात्कार लेने पहुँचा तो देखा कि उँचे मकान के
स्थान पर आसपास की अन्य मकानो को अधिग्रहित कर एक आलीशान मायावी पार्क बन गया है
और उसके बीचों बीच काली ग्रेनाईट के एक विशाल हाथी पर एक हाथ में बैग लटकाये महिला
की संगमरमरी मूर्ति प्रतिस्थापित है और सूर्योदय के समय झोपड़ी पर इस मूर्ति के बैग
की परछाई पड़ती है ।
साक्षात्कार के दौरान झोपड़ी में रहने वाले “नत्था” ने बताया कि जिस जमीन पर उसकी
झोपड़ी और पार्क निर्मित है, उसका असली भू-स्वामी वही उँचे मकान वाला ही है लेकिन जब
यह जमीन खाली पड़ी थी तो उसने जमीन के इस हिस्से में कब्जा कर अपनी झोपड़ी बना कर रह
रहा है। बाद में मकान मालिक ने बैंक से लोन लेकर बाकी बची जमीन पर अपना मकान बनाया
और झोपड़ी व मकान के बीच दीवार उठा कर अघोषित रूप से झोपड़ी वाले जमीन पर अपना मालिकाना
दावा छोड़ दिया था ।
पत्रकार नौजवान था और निष्पक्ष भी किंतु अभी भी उसके अन्दर जेएनयू में
ट्रांसप्लांट किये गये वामपंथी कीटाणु जागृत थे, इसलिए इस जानकारी को अपने मतलब की
न समझकर उसने कहा - मुझे इस बात से मतलब नहीं है कि जमीन किसकी थी, तुम सिर्फ इतना
बताओ कि क्या सचमुच तुम्हे सूरज की रोशनी रोके जाने का मलाल था या उससे कोई तकलीफ
थी ?
नत्था ने कहा – अरे नहीं साहब, बल्कि मैं तो बहुत
मजे में था । सुबह-शाम सूरज की मखमली किरणें तो मेरे घर पर आती ही थी और ये तो
मेरे लिए सोने पर सुहागा था कि दोपहर की कड़ी धूप से मेरी झोपड़ी सुरक्षित रहती थी
जिससे गर्मी में भी झोपड़ी में ठण्डक बनी रहती थी । अब तो गर्मी में सीधी धूप पड़ती
है और पंखे से भी कोई राहत नहीं मिलती । हाँ सुबह-सुबह पार्क में लगी बहनजी की मूर्ति
के पर्स की परछाई, बुद्ध के फोटो पर उगते सूरज की रोशनी पड़ने से रोकती है ।
कुछ इधर उधर की बातों के दरम्यान उसने चहकते हुए
बताया कि पार्क बनने से अब यहाँ भीड़-भाड़ रहने लगी है । कुछ दिनों पहले रामविलास जी
ने उससे इस झोपड़ी के बदले एक बढ़िया सर्वसुविधायुक्त 3 BHK डुप्लेक्स
मकान दिलाने का वादा किया है । वे बता रहे थे कि वे जनता के सहुलियत के लिए
सेवाभाव से यहाँ मल्टीप्लेक्स जैसा कुछ बनवाना चाह रहें है, जिससे प्रदेश का विकास
होगा । मैं भी खुश हूँ कि मुझे इस कड़ी धूप से राहत मिल जायेगी और मेरे जमीन पर
मल्टीप्लेक्स बनने से सभी लोगों को सुविधायें मिलेंगी और देश का विकास होगा ।
पत्रकार अब बड़ा असमंजस में था, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था । स्वचलित सा वह उठा और
हाथ जोड़कर नत्था से विदा होने की अनुमति माँगी .. नत्था ने बड़े गर्मजोशी से हाथ
मिलाकर कहा “लाल सलाम साहब” ।
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