मंगलवार, 20 सितंबर 2011

मेरा जीवन दर्शन

जीवन के बहुमूल्य 20 वर्ष पोथी पढ़ने में व्यतीत किया ! (A+B)2  की सार्थकता उदरपूर्ति के अलावा नजर नहीं आयी किंतु न्यूटन का तीसरा नियम इन परेशानियों में समान वेग से विपरीत प्रतिक्रिया करने लगा फलस्वरूप फिर जोखिम उठा बुध्दजीवियों एवं दार्शनिकों को 10 वर्षों तक अध्ययन करने का प्रयास किया किंतु किसी ने भी महल और झोपड़ी के असमानता के कारण से मुझे संतुष्ट न कर सका ! सोचा चलो स्वयं ही अपने जीवन दर्शन की खोज में निकल पड़ता हूँ शायद मंजिल मिल जाये और जीवन सार्थक हो जाये !

इसी उधेड़बुन में अकेला ही बिना किसी पूर्वाग्रह और प्राप्ति की आकांक्षा से निकल पड़ा ! रास्ते पर कई मुसाफिर मिले उनमें कुछ फकीर से जीवन की मूलभूत समस्याओं का बोझ लेकर किंतु असीम आत्मिक सुख से परिपूर्ण
,चेहरे पर बेफिक्री का आलम और अलौकिक तेज से परिपूर्ण, जीवन को उत्सव की तरह मनाते हुए भविष्य की परवाह न करते हुए वर्तमान में जीते लोग जिन्हे यांत्रिक दुनिया दलित और पिछड़ा मानते हुए आदिवासी की संज्ञा देती है !

कितनी सटीक संज्ञा है “ आदिवासी “ ! आदिकाल से यही लोग हैं जो जीवन जीने की वास्तविक कला जानते हैं ! किंतु यांत्रिक दुनिया के रहनुमा इन्हे अपने निजी यंत्रों को सुचारू रूप से चलायमान स्थिति में रखने के लिए अब संसाधन की तरह उपयोग करने लगे हैं और उनका वो जीवन उत्सव अब मातम में परिवर्तित हो चुका है !

इन्ही उलझनों के साथ उफाफोह की स्थिति में किसी तरह यात्रा की निरंतरता बना चलता रहा !अचानक
जीवन पथ पर अनचाहे रूप से एक ज्ञानी दीमक से सामना हुआ ! इठलाकर कहने लगा तुम्हारी चाल शास्त्र सम्मत नहीं हैं ! विद्वानो ने तुम्हारे चाल चलने के तरीके को गलत बताया है ! सही तरीका ये है जो मैं चल रहा हूँ ! मैंने उससे पूछा महोदय आप जो कह रहे हैं मैं उसका विरोध नहीं कह रहा हूँ पर आप सही कह रहे हैं इसका आप कैसे दावा कर सकते हैं ! उसने बड़े दम्भपूर्वक कहा थोड़ा परिश्रम करो और फलाँ-फलाँ पोथी पढ़ो !

एक क्षण रूका और सोचा तो ध्यान आया कि ये सारी पोथी
,ये ग्रंथ तो मैंने स्वयं से खिन्न होकर एक आलमारी में बंद कर कई वर्षो से रख छोड़ी हैं ! मन में निश्चय किया कि क्यों न एक बार पुन: देखा जाय दीमक महोदय ने जब इतने आत्मविश्वास से कहा है तो कहीं मुझसे ही कोई गलती नहीं हुई? बरसों बाद उस आलमारी को खोला तो देखा सारी पोथियों को दीमक चाट चुके हैं ! एक वरिष्ठ प्रशासनिक दीमक ने कहा हमारा स्वयंसेवी मानवाधिकारी मार्गदर्शक दीमक आपकी सारी पोथी चाट गया है और कह गया है कि हमारे चाटने के लिए भी कुछ पोथी की व्यवस्था करेगा !

मैंने उनसे कहा आप मेरे अतिथि हैं आपको भूखा रखना मेरे लिए पाप होगा अत: मेरे इस पोथी ज्ञान अर्जन के प्रमाण पत्र जो कुछ ईंटगारों से बने प्रतिष्ठानों द्वारा प्रदान किये गये हैं तथा जिन्हे मैं अपने जीवन के स्वर्णिम दिनों में अर्जित किया था और इन्हे अमूल्य निधि समझ कर सहेज कर रखा था
,यही शेष है जो अब मेरे किसी उपयोग का नहीं है ! इसे ही भक्षण कर अपनी पिपासा शांत करें !

अतिथियों से विदा लेकर वापस उसी ज्ञानी दीमक के पास लौटा और बड़े विनय पूर्वक कहा महोदय आपने मेरी पूरी पोथी तो चाट ली है एक उपकार और कर दें
, इस मूढ़मति में जो कुछ पोथी ज्ञान बचा हुआ है उसे भी चाट कर खाली कर दे ताकि मैं स्वयं की खोज में बिना किसी पोथी ज्ञान के निकल सकूँ तथा फिर से कोई और ज्ञानी दीमक मुझे भटका ना सके !

बस अब चल पड़ा हूँ सारी पोथी तजकर और अपनी मूढ़मति से सारा पोथी ज्ञान हटाकर कबीर और रैदास के पद चिन्हों पर ! आमंत्रित करता हूँ सभी पथिको को जो मेरी तरह इन सभी को त्यागकर निकल पड़े हैं वास्तविक आनंद की तलाश में बिना किसी महत्वाकांक्षा के ! आईये साथ चले उस मार्ग पर जहाँ जीवन का हर पल अभावों के बावजूद भी उत्सव हैं !! जय हो !! ...

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