गुरुवार, 28 नवंबर 2013

रूपा की थण्डर बीयर


अपना कोई परमानेंट ठिकाना तो रहता नहीं । कल रात पुराना मित्र जिग्नेश भाई हमें फोन कर पूछा - जय श्री कृष्णा महापात्र भाई , केम छो ? 

हमने कहा - मज्जा मा ।  तमे केम छो जिग्नेश भाई ?   

गिग्नेश बोला - हुँ सवारे रायपुर आऊँ छुँ । तमे क्याँ रहो छो ? 

मैने सोचा , साला ई गुज्जु भाई इतना दिन बाद आ रहा है और मैं शहर से बाहर हूँ । सोचा चेला भोला शंकर को फोन लगा कर इसकी व्यवस्था बनवाता हूँ । मैनें जिग्नेश से कहा - जिग्नेश भाई मैं तो शहर के बाहर हूँ ,  पर मेरा बन्दा आपको रिसीव करेगा और रूकने खाने की व्यवस्था कर देगा मैं कल रात तक पहुँचता हूँ , फिर मिलते हैं । 

ओके जय जिनेन्द्र - जिग्नेश ने कहा 

मैने भोला को फोन लगाया । भोला ने फोन उठा कर कहा -  अरे क्या बात है महाराज,  आज कुँआ खुद प्यासे के पास । मुझे तो ठीक वैसा ही फील हो रहा है जैसे राहुल भैय्या किसी गरीब आदिवासी के घर में डिनर के लिए आये हों ।  

हमने कहा -  सुन बे केजरीवाल के आंतरिक लोकपाल,  ज्यादे फुदक मत । मेरा दोस्त सुबह आ रहा है । उसे एयरपोर्ट से पिकअप कर लेना और उसके खाने पीने की पूरी व्यवस्था अच्छी तरह से करना । शिकायत का कोई मौका नहीं मिलना चाहिए । मैं कल रात या फिर परसों सुबह आऊँगा । तब तक उसकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए । समझा ? 

 भोला बोला - महाराज आप चिंता ना करें । हमारे गऊमित्र के पीने खाने में कोई कमी नहीं रहेगी , ये भोला शंकर का वचन है ।

हमने कहा - अबे उसे गौमूत्र पिलायेगा क्या ? 

भोला बोला - अरे नहीं महाराज , आप भी ना कभी कभी शुद्ध हिन्दी व्याकरण समझ नहीं पाते हो । गौमूत्र नहीं , गऊमित्र , माने गुरू का मित्र .......  ग + ऊ + रू + मि + त्र = गऊमित्र  । इसमें "रू" साईलेंट है क्योंकि गुरू के मित्र की व्यवस्था के लिए रूपये पैसे की चिंता नहीं होनी चाहिए , ये अधर्म है । 

हमने कहा – वाह रे वर्ण संकराचार्य । तुझ पर तो पतंजलि का पूरा व्याकरण महाभाष्य न्यौछावर करना चाहिए, पर देख हमारे मित्र को कोई तकलीफ ना हो । 

भोला बोला – डोण्ट वरी महाराज , योर फ्रेण्ड इस ऑन माय कस्टडी । गिविंग मी रिस्पांसिबिलिटी यू डन हाफ वर्क  बिकॉस वेल बिगन इस हॉफ डन  । 

हमने कहा – चल भाई भगवान करे ऐसा ही हो , मेरे पास और कोई ऑप्शन भी नहीं है । 

अभी सुबह सुबह मैने जिग्नेश भाई को फोन लगा कर खैरियत पूछी तो बोला - भाई , मजा मा छे पर तमारी  चेला भोलाशंकर भाई खूब ज खतरनाक छे । 

हमने कहा – क्या हुआ जिग्नेश भाई , उसने आपसे कोई बदतमीजी की क्या ? 

जिग्नेश बोला – ऐ क्या बोलते हो तमें महापात्र भाई ? आपका चेला तो बड़ा ही मस्त आदमी है पर .. ( फिर उसने अपनी परेशानी बताई ) 


मैने भोला को फोन लगाया लेकिन मैं उसे कुछ कहता उससे पहले ही भोला का वन वे ट्रैफिक चालू हो गया –
अरे हम अभी नहाकर आपको फोन लगाने ही वाले थे , आप जल्दी मरोगे नहीं महाराज ।
पर महाराज आपका दोस्त तो बहुते बड़ा वाला पियक्कड़ है भाई । साला सुबह से ही चालू हो जाता है । सुबह सुबह एयरपोर्ट से आते समय ही बोला – ऐ भोलाभाई , तमेको एक बात बोलूँ त बुरा तो नई मानोगे न ?  
तो मैने कहा – अरे आप गऊमूत्र हो आपकी बात का क्या बुरा मानना ? 
तो उसने कहा – में हे ना अपना ठण्डर बीयर लाना भूल गया हूँ । तमे दो पीस ला दोगे क्या ? 
तो मैने कहा – अभी तो दूकान खुला नहीं होगा ? एकदम जरूरी है क्या ? 
तो उसने कहा – हाँ भाई जरूरी ही है । क्या है ना के मेरे को नहाने के बाद बड़ी दिक्कत हो जायेगी । 
मैने उन्हे होटल में पहुँचाया और बस आपका इज्जत रखने के लिए बड़ी मुश्किल से ठेका के पिछले दरवाजे से जुगाड़ बनाकर चार बोतल थण्डर बीयर लिया । उसे होटलब्वाय को उनके कमरे में पहुँचाने के लिए देकर बस अभी घर पहुँचा हूँ नहाने के लिए । अच्छा महाराज , आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे ? दोपहर में उनके पीने के लिए क्या ले जाना है ? बता दीजीए नहाने के बाद पहुँचा आऊँगा , तब तक अपनी पर्ची वाली दुकान भी खुल जायेगी ।  

हमने कहा – अबे लालबुझक्कड़ की भटकती आत्मा ...  वो गुज्जू आदमी है , शुद्ध वैष्णव समझा । उसने तुझे अण्डरवीयर के लिए बोला और तू उसे थण्डर बीयर दे आया । उसका अभी फोन आया था, नहाने के बाद गीला टावेल पहन कर ठिठुर रहा है , जल्दी जा और दो रूपा की चड्डी पहुँचा कर आ ।  और सुन बे रूपा की मतलब रूपा कम्पनी की देना वरना तेरा कोई भरोसा नहीं पड़ोसन की छत से उतार कर दे आये । 


शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

सरकार तो बननी तय है


चेला भोला शंकर भी आजकल राजनैतिक पण्डिताई की दुकान जमाने में लगा है । कल सुबह सुबह ही उसने मुझसे निवेदन किया - महाराज , आपके मातापिता को नमन है जिन्हे आपके जन्म पर ही पता चल गया कि आप दूरदृष्टा होंगे इसलिए आपका नाम संजय रख दिया । आप जैसा अंतर्यामी इस ब्रह्माण्ड में कोई नहीं । एक बार अगर शोभन सरकार के सपने के बारे में पुरातत्व वाले आपसे सलाह लिये होते तो आज साठ लाख रूपये की ऐसी मिट्टी ना खोदे होते जो ईंटा भट्टा के काम भी नहीं आ पा रहा है । 

हमने कहा - रे, ब्रह्मभट्ट कुल के नन्दन । हमारे खुरदरे चरित्र पर चिकनाई लगाना छोड़  ।  मेरे मातापिता भी हर  बालक के मातापिता जैसे ही सामान्य थे , जो समयकाल के लोकप्रिय व्यक्ति के नाम पर बच्चों का नाम रखते हैं । घरवाले बताते हैं कि पिताजी ने जब हमें पहली बार गोद में लिया था तब हमने उनके उपर तेज धारा में ऐसा मूत्र प्रक्षालन माने सू-सू कर दिया जैसे उनकी जटा से कोई नदी उद्गम हो रही हो इसी चरित्र के कारण उन्होने संजय गाँधी के नाम पर हमारा नामकरण कर दिया । हालांकि घर वालों की बात पर मैं अब भी विश्वास नहीं करता हूँ ।

 विश्वास से याद आया .... बता बे कुमार विश्वास के चारित्रिक सहोदर  इस चापलूसी के पीछे तेरा क्या स्वार्थ निहित है ? 


भोला सकपकाया और संकोच करता हुआ बोला - महाराज , हमारी दोनों पार्टी के लाईजिनिंग नेतानुमा व्यापारियों से सेटिंग हुई है । उन्होने कहा है कि एक बार उन्हे गोपनीय ढंग से बता दें कि कंफर्म किसकी सरकार बन रही है तो अपना दक्षिणा पेंशन सेट कर देंगे ।

हमने कहा - ठीक है , दोनों को एक एक कर भीतर खोपचे में लाओ । 

चेला भोला दौड़कर बाहर गया और एक खद्दर धारी व्यक्ति को लेकर आया । उस आदमी के लाल दमकते चेहरे को देखने से ही लगता था कि वो माँ के दूध के बाद केवल जूस का ही सेवन कर रहा है । उसने  हमें देखकर अपना पंजा हिलाया । 

भोला शंकर ने उसे तुरंत टोका - अबे, कुटिल मुनि ! महाराज ये हैं , तू इन्हे आशीर्वाद देने आया है या लेने । चरण स्पर्श कर और महाराज को अपना पंजा हिलाने दे ।   

कुटिल मुनि ने कहा - क्षमा करें महाराज , हमारा धर्म एक ही ईश्वर की पूजा करने की इजाजत देता है और राजमाता के सिवा किसी के आगे अपना सर नहीं झुकाते । 

हमने कहा - वाह रे मेरे कोहेतूर , जब राजमाता के चरणवन्दन में कोई तकलीफ नहीं तो फिर वन्देमातरम कहने में क्या दिक्कत है ? 

भोला शंकर अपनी दक्षिणा पेंशन का मामला बिगड़ता देख बीच में बोल पड़ा - जाने दें महाराज , नादान है । आप तो इन्हे बताये की सरकार बनेगी की नहीं ? 

हमने कहा- खैर चाहे कुछ भी हो जाये पर मैं दावे के साथ कहता हूँ कि सरकार बनना तय है ।  

इतना सुन कुटिल मुनि की बाँछे खिल गई और अपना चरित्र बदलकर साष्टाँग प्रणाम किया और जोर से बोला - वन्देचीनीउँगलीमहाराज । 

कुछ समय बाद भोला दूसरे क्लाईंट को लेकर आया । माथे पर कुमकुम चन्दन से बना त्रिशुल , काँधे में गेरूआ दुपट्टा । देखने से ही लगता था कि नया नया दीक्षा लिया है और किसी बड़े सप्लाई आर्डर की फिराक में है । 

सामने आते ही उसने अपनी तीन उँगली निकाली और बोला - महाराज नमो नमो । 

भोला शंकर भड़क गया ,  बोला - अबे नवीन दीक्षित, तू यहाँ कोई रैली में नहीं आया है । चुनाव खतम हो गये हैं, अपनी तीनों उँगली अन्दर रख ।  अगर महाराज ने अपनी चीनी उँगली कर दी तो फिर ना उठ पायेगा ना बैठ पायेगा । तमीज से प्रणाम कर  । 

दीक्षित सकपकाया और सर झुकाते हुए बोला - प्रणाम , भाई साहब । 

भोला ने भुनभुनाते हुए मेरे कान में कहा - महाराज , इनकी यही दिक्कत है , अपने दादा के उम्र के लोगों को भी भाईसाहब कहते हैं । 

हमने कहा - क्या मतलब है तेरा , हम क्या इतने उम्रदराज है ? 

भोला ने कहा - नहीं महाराज , हम तो यूँ ही बता रहें है - जस्ट फॉर यूवर काईण्ड इंफोर्मेशन । 

अच्छा , फेर ठीक है । और हमने उसके तंत्र मंत्र पर नैसर्गिक विश्वास के चरित्र को भाँप कर कुछ बुदबुदाया और अपनी चीनी उँगली को इधर उधर हिलाते हुए कुछ गणना करने जैसा अभिनय कर कहा -  अखबार , सर्वे चाहे कुछ भी कहें , सरकार तो बननी तय है  । 

दीक्षित का चेहरा कमल जैसा खिल उठा और हाथ जोड़कर बोला - महाराज के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम । 

फिर जोर से एक नारा लगाया " कहो दिल से ... चीनी उँगली महाराज फिर से ।"   


भोला दोनो को किसी तरह विदा कर पुन: वापस आया और बोला - महाराज आप तो कभी झूठ बोलते नहीं फिर आज क्यूँ ? 

हमने कहा - अबे हमने न कभी झूठ बोला है और ना बोलेंगे । 

भोला चिढ़ते हुए बोला - तो ई बताओ इन दोनो पार्टी का सरकार कैसे बनेगा ?  क्या दूनो पार्टी मिलकर सरकार बनायेंगे ? 

हमने कहा - बेटा भोला शंकर ना तो राजमाता कभी ठीक से हिन्दी बोल पायेंगी और ना नमो टोपी पहनेगा इसलिए गठजोड़ का तो कोई चांस ही नहीं है ।

तो फिर दोनो की सरकार कैसे बन सकती है ? बेवकूफ बनाने की भी हद होती है ? - भोला अब लगभग करूणा बुआ के तेवर में आने लगा था । 


हमने उसके तेवर को भाँप अटल स्वर में कहा - देख बे , हमने दोनो को कहा है कि सरकार का बनना तय है लेकिन ये अभी तक नहीं कहा "किसकी बनेगी"  

चल जा और नहाकर आ , मुझे कुछ जलने की बदबू आ रही है । 

रविवार, 3 नवंबर 2013

नरकरूप चौदस कथा

चेला भोला शंकर आज शाम को पिटकर आया ।
हमने पूछा अबे क्या हुआ बे ? ये तेरा चेहरा आज इतना साम्यवादी क्यूँ लग रहा है ?

भोला बोला क्या बताऊँ महाराज , कल आपने कहा था ना के नरक चौदस में जाकर पटाखा ले आना ।

हा त साले तुम क्या सीधे नरक चले गये थे या पटाखे की दुकान पर आग लग गई ?

नहीं महाराज, हम बाजार गये , देखा त डबल चेचीस टाईप की महरारू भी पटाखा लग रहीं थी । साले ये कमबख्त मेरे दो अनमोल आँख मुझसे बगावत कर दिये और बिल्कुल आशाराम के चरित्तर के जैसे किसी ना किसी महरारू की ओर अपनी दिशा कर रहे थे । हमारी गलती इतनी हुई के जब हम दुकानदार से ये पूछ रहे थे के ये अनार कितने की है ? ये फुलझड़ी कितने की है ? उस वक्त भी ये बगावत जारी रहा । साले कुछ मुस्टण्डे टाईप के समाजसेवियों ने मेरे आँखों के जेहनी बगावत का सारा पुण्यप्रताप मेरे पूरे चेहरे में उड़ेल दिया । मैंने पूछा हरी ॐ बोलना पड़ेगा तो सालों ने मेरे तशरीफ को भी इज्जत बख्श दी ।

अच्छा त साले ये बात है ?

लेकिन महाराज इ बताओ के दीपावली तो कल है । इ महरारू लोग आज काहे इतना डेंटिंग पेंटिंग करवाया है?

अबे आज रूप चौदस है ।

लेकिन आज त नरक चौदस है ।

अबे नरक चौदस त हमारे लिए है । मेहरारू लोगन के लिए आज रूप चौदस है ।

महाराज बात कुछ समझ नहीं आई । दीपावली का बख्शीस के रूप में आज यही ज्ञान समझा दो

त सुन बे ....  नरकरूप चौदस कथा

   एक समय की बात है, शांति लाल नामक एक पत्नीपीड़ित पति था। वह बहुत ही निरीह और दुखी पुरूष था। सदैव
 पत्नी के सेवा कार्यों में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उसे लेने के लिए आये। वे दूत शांति लाल को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। 

यमदूतों को देख कर शांति लाल आश्चर्य चकित हो गया और उसने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है । 

शांति लाल की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- " अबे शांति लाल एक बार तुम्हारे द्वार से चीनी उँगली महाराज ( याने के हम ) बिना दारू पिये प्यासा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

शांति लाल ने यमदूतों से उलाहना देते हुए कहा कि मैं पृथ्वी पर ही अपनी पत्नी से पीड़ित होकर नारकीय जीवन जी रहा हूँ मुझे नरक ले जाकर क्या फायदा? ले जाना है तो मेरी पत्नी को ले जाओ। वो अनअथराईज्ड रूप से स्वर्ग का आनन्द ले रही है। शांति लाल का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और हॉटलाईन पर यमराज से डेथ वारंट में नाम परिवर्तन हेतु अनुशंसा कर अनुमति माँगने लगे।

यमराज ने मामले की गंभीरता को देखते हुए चित्रगुप्त को आदेश दिया – चित्रगुप्त, तत्काल शांतिलाल के डेथवारंट वाली नोट शीट में उसकी पत्नी का प्रपोजल डालकर लाओ और बैकडेट में मुझसे एप्रुवल साईन करवाकर पृथ्वीलोक में फैक्स करो।

चित्रगुप्त भी मंत्रालय का वरिष्ठ एवं अनुभवी लेखाधिकारी था । उसने नोट शीट में लिखा – 

गत पृष्ठ के आगे.....
यमराज महोदय के मौखिक निर्देशानुसार शांतिलाल के स्थान पर उसकी पत्नी के आत्माहरण के प्रस्ताव प्रशासकीय स्वीकृति हेतु प्रस्तुत है, किन्तु महोदय के ध्यान में इस तथ्य को लाना आवश्यक है कि शांतिलाल की पत्नी ही नहीं, वरन उस जैसी सारी पत्नियाँ पृथ्वीलोक में अपने अपने पतियों के जीवन में नरकमय वातावरण बनाये रखने में पूरे मनोयोग से कार्यरत है। ऐसी सारी भद्र महिलायें यमलोक के नर्क विभाग के कर्मचारियों से भी अधिक कार्य-कुशलता से बिना वेतन कार्य कर रहीं हैं। वास्तव में इन्हे पृथ्वीलोक में नर्क विभाग से प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए। यदि ऐसी स्त्रियों का आत्माहरण कर यमलोक लाया जायेगा तो यमलोक की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ने के साथ साथ पृथ्वीलोक में यमलोक के यातनाओं के प्रचार-प्रसार पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही शांतिलाल जैसों के पत्नी पीड़ा से मुक्त हो जाने पर उन्हे पृथ्वीलोक में नारकीय जीवन नहीं मिलने के कारण उन्हे भी नर्क में शिफ्ट करना पड़ेगा जिससे नर्क लोक में एकोमेंडेशन की समस्या विकराल रूप लेकर भगदड़ की स्थिति निर्मित करेगी।  

इसलिए पृथ्वीलोक पर ही कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाय कि ऐसी सभी स्त्रियों को नर्क विभाग की प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी घोषित कर उन्हे बिना वेतन कार्य करने के बदले मानदेय स्वरूप उनके पति के खर्चे से स्वर्गिक आनन्द प्रदान हो सके और वे बिना किसी रूकावट के अपने पतियों को नर्कविधान अनुसार कष्ट प्रदान करती रहें ।

इस व्यवस्था की वार्षिक समीक्षा के लिए एक निश्चित तिथि भी निर्धारित किये जाने हेतु प्रस्तावित है जिसमें शांतिलाल जैसे पुरूष यमराज के नाम से भयाक्रांत होकर आप श्रीमान की पूजा अर्चना करें और उनकी पत्नियाँ के प्रतिनियुक्ति पर एक वर्ष पूर्ण होने पर वार्षिक आनंदोत्सव का आयोजन किया जाय । 

यदि महोदय सहमत हों तो महोदय के अवलोकनार्थ एवं अनुमोदनार्थ प्रस्तुत ....  सी.गुप्त , वरिष्ठ सचिव , लेखा विभाग

यमराज ने इस अद्भुत टीप से प्रभावित होकर अपना इरादा बदला और लिखा ... 

अनुमोदित , यथा प्रस्तावित ।
शांतिलाल के आत्माहरण आदेश निरस्त किया जाय और वार्षिक समीक्षा के लिए कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि निर्धारित की जाती है ।

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इस तरह प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि को शांतिलाल के प्राण बचने के कारण पुरूषों द्वारा इस दिवस को “नरक चौदस” एवं अपने पति को प्रताड़ित किये जाने के कर्तव्य को वैधानिक दर्जा दिये जाने पर स्त्रियों द्वारा आनंदोत्सव के रूप में इसे “रूप चौदस” के रूप में मनाया जाने लगा।   


शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

चीनी उँगली की जय

 नामांकन दाखिले के बाद चीनी उँगली महाराज याने के हमारे आश्रम में विजय श्री का आशीर्वाद लेने आ रहे उम्मीदवारों को महाराज बड़े विश्वास से एक ही वरदान दे रहे थे ...  

जा बच्चा , विरोधी की हार सुनिश्चित है , इसे ब्रह्मा भी नहीं बदल सकता । 

और जैसे ही उम्मीदवार लालबत्तीधारी विशिष्ठ व्यक्ति बन जाने पर महाराज को मोटा चढ़ावा के साथ पुन: चरण दर्शन का संकल्प लेकर चरण स्पर्श करता तो हमारे पीछे खड़ा  चेला भोला शंकर पूरे जोश और उत्साह से प्रश्न वाचक मुद्रा में चिल्लाता  - चुँगली महाराज की ?????   

प्रत्याशी नेता और साथ विचरण कर रहे उसके अनुचर समवेत स्वर में जवाब देते हैं - "जय" 


ये सिलसिला व्यस्तता के साथ दिन भर अनवरत चलता रहा । देर रात्रि पहली फुर्सत में हमने भोला शंकर से पूछा - क्यूँ बे , ये चीनी उँगली महाराज से हम कब चुँगली महाराज हो गये ? 

भोला गंभीर होकर बोला - महाराज ये टेक्नीकल और प्रोफ्रेशनल दूनो मामला है । 

हमने कहा - वो कैसे बे ? 

भोला बोला - देखिए जैसे पीत + अम्बर = पीताम्बर , गज + आनन = गजानन ,
लम्ब + उदर = लम्बोदर , ......  ठीक वैसे ही चीनी + उँगली = चुँगली । 


हमने कहा - अबे लेकिन चीनी + उँगली = चींनुगली होना चाहिए ये चुँगली कैसे ? 

भोला के आँख में एक दिव्य चमक आ गई । लगा जैसे वो मुझे ज्ञान देकर अपनी गुरू दक्षिणा का फाईनल पेमेंट करने वाला है । वो बोला - महाराज चीनुंगली "राईम" में नहीं आता और लोगों की जबान में फिट नहीं होगा , और फिट नहीं होगा तो जाहिर है ये नाम हिट नहीं होगा और हिट नहीं होगा मतलब मार्केटिंग स्ट्रेटजी फेल इसलिए चुँगली राईम में बैठता है देखना ये मार्केट में हिट हो जायेगा । 

इसे कहते हैं प्रोफेशनलीज्म , समझे महाराज ? 

हमने कहा - तू अब भोला नहीं रहा बे , अब तुझे मेरी जरूरत नहीं । 

ये सुनकर भोला चकराया और अपनी औकात को धड़ाम से जमीन में पटकर हाथ जोड़कर फरमाया - महाराज पब्लिकली कहना अश्लील होगा लेकिन सच्चाई तो यही है कि पेण्डुलम चाहे कितना भी बड़ा हो जाय पर लटकता तो नीचे ही है ना । 

खैर छोड़िये महाराज , मुझ अकिंचन को क्षमा कर जिज्ञासा को दूर करें । 

हमने कहा - अब तुझे कौन सी जिज्ञासा है बे ? 

भोला बोला - महाराज , मैने कभी आपको झूठ बोलते नहीं सुना , लेकिन आज आप सभी उम्मीदवारों को एक ही वरदान दे रहे थे " विरोधी की हार सुनिश्चित है , इसे ब्रह्मा भी नहीं बदल सकता " । सबके विरोधी हारेंगे तो जीतेगा कौन ? और जीतेगा भी तो कोई एक ही ना ? सबके सब जीत कैसे पायेंगे ? 

हमने कहा - देख बोला , इनमें से कोई भी जीते , जीतने के बाद इन सबका एक ही विरोधी हो जाता है ....  वो है आम जनता ।

क्योंकि सत्ता - शक्ति का केन्द्र है , और आम जनता - दीन हीन दुर्बल । शक्ति और दुर्बलता , ये दोनो परस्पर विरोधी है इसलिए  

""  चुनाव में कोई भी जीते , आम जनता की हार सुनिचित है ।""  

भोला शंकर भक्तिभाव से दोनो हाथ जोड़कर बोला - महाराज की चरणों में कोटि कोटि प्रणाम । 

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

पीले खजाने का स्वप्नदोष



चेला भोला शंकर ने सुबह सुबह सण्डे का सारा मजा किरकिरा कर दिया ।  हमें कुम्भकरण से रामदेव बाबा बनाने की नीयत से दरवाजे पर ही खड़े होकर जोर जोर से राग भैरव में चिल्लाया .... 

उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो तू सोवत है 
जो जागत है सो पावत है,
जो सोवत है वो खोवत है 
खोल नींद से अँखियाँ जरा
और अपने प्रभु से ध्यान लगा 
यह प्रीति करन की रीती नहीं
प्रभु जागत है तू सोवत है....

हमने भी नींद में ही उसे टरकाने के हिसाब से गुलाम अली का गजल चालू कर दिया ...
मकां के सब मकीं सोये पड़े हैं
हवा का शोर मुझसे कह रहा है 

जिसे मिलने तुम आए हो यहाँ पर
वो कब का इस मकां से जा चूका है 

लेकिन साला भोला ठहरा तो हमारा ही चेला , वो कहाँ टरकने वाला था ... रिप्लाई में एकदम साहित्यिक कविता ढकेला ...

जानता जब तू कि कुछ भी हो तुझे ब़ढ़ना पड़ेगा
,
आँधियों से ही न खुद से भी तुझे लड़ना पड़ेगा,
सामने जब तक पड़ा कर्र्तव्य-पथ तब तक मनुज ओ
मौत भी आए अगर तो मौत से भिड़ना पड़ेगा,
है अधिक अच्छा यही फिर ग्रंथ पर चल मुस्कुराता,
मुस्कुराती जाए जिससे ज़िन्दगी असफल मुसाफिर!
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर।
याद रख जो आँधियों के सामने भी मुस्कुराते 
वे समय के पंथ पर पदचिह्न अपने छोड़ जाते  ....... 

हमने ना चाहते हुए भी निद्रादेवी की साधना को बीच में बलात भंग किया और उसकी कवितामयी ज्ञान को बीच में ही रोककर चिल्लाया – अबे बस कर बे गोपालदास की भटकती आत्मा ... नींद के आगोश से उठ गया हूँ , अब क्या दुनिया से भी उठवायेगा ?

भोला दौड़कर हमारे करीब आया और गुरू शिष्य परम्परा का जबरिया निर्वहन करते हुए अपने दोनों हाथों को मेरे घुटने से टकराया ।

हमने कहा - क्यूँ बे ? लम्बाई छोटी हो गई है या कमर में मोच आ गई जो तेरे कृतघ्न पंजे हमारे चरणकमल तक नहीं पहुँच पा रहें हैं ।

उसने बड़े दार्शनिक अंदाज में फरमाया – महाराज , फीट टचिन्ग ओल्ड फैशन हो गया है, अब लेवल जरा अप होकर नी टचिन्ग तक आ गया है । यही आजकल लेटेस्ट ट्रेण्ड है ।

हमने कहा – अच्छा बे, कल वो चड्डीनुमा जींस पहनी षोडषी कन्या ने जब लेटेस्ट ट्रेण्ड के हिसाब से तुझसे हल्लो बोलने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया था, तब तो तू उसे बड़ा दिव्यज्ञान दे रहा था कि वस्त्र भले ही कितने छोटे हो जाय पर हमने अपनी संस्कृति को छोटी नहीं करनी चाहिए । हम भारतीय हैं और परम्परानुसार हमें एक दूसरे को हाथ मिलाकर नहीं,  गले मिलकर अभिवादन करना चाहिए ।

भोला ने सहज आत्मस्वीकारोक्ति करते हुए कहा – वो तो महाराज, मैं उस समय जरा आशाराम बापू टाईप का संत-ई-मेंटल हो गया था ।

हमने कहा – चल कोई बात नहीं, ये नी टचिन्ग भी सम्मानजनक ही है, वरना आशाराम ने तो टचिन्ग के स्टैण्डर्ड को कुछ ज्यादे ही अप कर कमर के लेवल तक ले आया है ।  

खैर जाने दे, ये बता आज क्या जिज्ञासा लेकर आया है ?

भोला ने कहा – महाराज आज जिज्ञासा नहीं, शिकायत है ।

हमने कहा – साले आजकल तू प्रोबेशनर से ज्यादे प्रोफेशनल टाईप का बिहेब कर रहा है । बहुते शिकायत रहती है बे, तुझे । चल बता क्या कम्प्लेंट है ?

भोला ने कहा – महाराज, आजकल आपका हिन्दी बहुते ज्यादे खराब हो गया है, आप बात बात पे इंग्लिश वर्ड बहुते यूज करने लगे हैं ।

हमने कहा – अबे, हम रामदेव टाईप का मल्टीनेशनल महाराज बनने का सोच रहा हूँ, इही लिए बीच-बीच में इंग्लिश घुसाड़ना जरूरी हो गया है । साले तुम्हारे जैसे चपाटों से अब गुजारा तो सम्भव है पर फेमस नहीं हो पायेंगे, समझा ?

बस यही कम्प्लेंट था ? ... हो गया सेटीस्फाईड ?

भोला ने कहा – नहीं महाराज ई कम्प्लेन नेई है , ई त क्यू-रे-सीटी था । क्यू-रे-सीटी बूझते हैं ना महाराज ... क्यू-रे-सीटी मतलब जिज्ञासा ।

हमने कहा – अच्छा बेटा, अब हमें कोचिंग भी देने लगे हो ।

भोला ने कहा – नई महाराज, हम आपको कोचिंग दें, इत्ता औकात नई है आपका ।
हमने कहा – अच्छा ठीक है, सूरज को दिया मत दिखा । मेन कम्प्लेन का है ई बता ?

भोला ने कहा – महाराज, आपने परसों मुझे एक वरदान दिया था के रात को सपना में जो भी जगह देखेगा वहाँ पीला खजाना निकलेगा ।

हमने कहा – हाँ दिया था ?

भोला ने कहा – उ सच नहीं निकला ।

हमने कहा – अबे हम चीनी उँगली महाराज है और तू इत्ता भी नहीं जानता के चीनी माल का कोई गारंटी थोड़े ना होता है । बाबाओं के इस हार्ड काम्पीटिशन के दौर में गारंटी का उम्मीद भी नहीं करना चाहिए । चल गया तो टनाटन वरना बिका हुआ माल वापस नहीं होगा ।

लेकिन ई बता, साले तूने सपना क्या देखा था ?

भोला ने कहा – महाराज, मैनें परसों सपने में पुराने खण्डहर के तहखाने को देखा और कल जब अपने असिस्टेंट से उसका खुदाई कराया तो उसमें केवल बदबूदार कीचड़ निकला ।

हमने कहा – अबे शेखचिल्ली के आखिरी वंशज । साले जब सपना देखा तो पहले किसी महंत को बताना था।  डाईरेक्ट खुदाई करने क्यूँ चला गया ?

और सुन चीनी उँगली का वरदान कभी गलत नहीं होता । जिस जगह को तुमने सपने में देखा वो कालेज के पुराने गर्ल्स हॉस्टल का सेफ्टिक टैंक है ।  हमने तुमको वरदान दिया था ना, के पीला खजाना निकलेगा |  वो पीला खजाना ही है, सूख गया है इसलिए कलर चेंज हो गया है । 

और आईन्दा के लिए एक बात गाँठ बाँधकर रख ले , अगर सपने में जब कोई गर्ल्स हॉस्टल आये तो वह दिव्य बोध नहीं , एक बीमारी है, यह एक मानसिक दोष है, जिसे मेडिकल भाषा में स्वप्न दोष कहते हैं ।

अब जा उस खजाने को किसी खेत में फैलाकर आलू की खेती कर । सुना है जबर-दस्त पैदावार होती है ।

रविवार, 22 सितंबर 2013

जुगाड़

चेला भोला शंकर आज बहुत उदास दिखा । मैने उससे पूछा - क्यूँ बे भोला रोज प्याज जैसी चमकदार दिखने वाली तेरी सूरत आज चूसे हुए आम की तरह क्यूँ दिख रही है ?

उसने कहा - क्या बताऊँ महाराज , अपना धन्धा चालू होने के पहले ही ढप्प हो गया ।

मैने पूछा -  अबे ज्यादा मत फेंक , तू और धन्धा करेगा , साले तुझसे तो दलाली भी नहीं आती , धन्धा क्या खाक करेगा । बेटा किसी सरकारी दफ्तर में जुगाड़ जमा और मुफ्त की रोटियाँ तोड़ । यही तेरे भविष्य के अच्छा है और तेरी काबिलियत भी बस इतनी ही है ।

भोला बोला - महाराज उसी के जुगाड़ का धन्धा तो ढप्प हो गया है ।

हमने कहा - कैसे बे ? कोई बिचौलिया नेता तुझसे नौकरी दिलाने के एवज में पैसा तो नहीं ढग लिया ?

उसने कहा - नहीं महाराज , हमारे पिलान के हिसाब से नौकरी के लिए भटक रहे एक ठुल्ला को पटाये और उसको समझाये रहे के बेटा तुझे हम सरकारी नौकरी दिला देंगे । तो वो ठुल्ला पुछा – केतना पईसा लगेन्गा?

हम बोले चले बे ठुल्ले पईसा लेकर ही नौकरी में लगाना होता त हम खुदे अब तक रिटायर हो गये होते । कोई टुच्चे-मुच्चे दलाल नहीं है , चीनी उँगली महाराज के चेले हैं, सारा जुगाड़ आईडिया से लगाते हैं ।

भोला शंकर की नजर में अपनी इज्जत देखकर हमारा सीना गर्व से पाकिस्तान और बाँग्लादेश की सीमाओं तक फूल गया और दिमाग एकदम से द्रोणाचार्य सा होकर एकलव्य से एक पेटी ब्लेक डॉग दक्षिणा में माँगने का होने लगा लेकिन दिल साला बहुत ही कमजोर है इसलिए बगावत कर गया ।

हमने खुद के दिल और दिमाग में सुलह करवाते हुए भोला से पूछा – फेर क्या हुआ ?

भोला ने कहा – हम उका समझाए के देख ठुल्ला तुम्हरा के करना कुछ नई है बस हम जैसा कह रहा हूँ उसका फालो करो ।

ठुल्ला बोला – का करें ?

 भोला ने कहा  - देखो , हम दुनो मुजफ्फर नगर चलतें है और हम तुम्हरा खिलाफ थाना में रिपोर्ट डालते हैं के दंगा में तुम्हरा हाथ है ।

ठुला पुछा  - इससे त हम जेल चला जाऊँगा ।

 भोला ने कहा  - हट बुड़बक , जेल त महात्मा गाँधी भी गये थे .. तुम अमर हो जाओगे ।

ठुल्ला कहा – हम अमर नहीं ,, जी कर अपना परिवार का खर्चा चलाना चाहता हूँ ।

भोला बोला – अबे बुड़बक हम भी उसी का जुगाड़ कर रहें हैं , देख जब कोर्ट में गवाही की बारी आयेगी त हम तुम्हे पहचानने से इंकार कर देंगे और तुम्हारी रिहाई हो जायेगी और तुम्हारे रिहा होते ही सरकार तुम्हारे लिए सरकारी नौकरी का इंतजाम और नकद मुआवजे का जुगाड़ कर देगा । लेकिन खयाल रहे तुम साले खाली सरकारी नौकरी करोगे और जो नकद मुआवजा मिले उस पर हमारा हक होगा, याने मुआवजे का सारा रकम हम लेंगें । शर्त मंजूर त बताओ वरना हम दूसरा ठुल्ला खोजेंगे ।

फेर का हुआ ???

फेर होना का था महाराज .. अन्धा कोनो ऐश्वर्या के आँख के लिए बार्गेनिन्ग करता है का ???


मामला सेटल हो गया और हम दूनो पिलानिन्ग के हिसाब से बिदाऊट टिकट दिल्ली वाले गरीब रथ टिरेन में सवार हो गये । साला ट्रेन में धक्का खाकर दोनो मुजफ्फरनगर जाने के लिए दिल्ली स्टेशन में उतरे ही थे कि टेशन पर लगे बड़े एलसीडी टीभी के न्यूज में बताया हैदराबाद कोर्ट ने अन्धरा सरकार को लतियाते हुए कहा के साले ये कोई तुम्हारे बाप की जागीर नहीं है जो खैरात में बाँट दो ।  जिन ठुल्लों को नौकरी और मुआवजा दिये हो उन सबका नौकरी से बर्खास्त करो और मुआवजा का पईसा वसूल करो ।

इ सुनते ही हमरा माथा ठनका और महाराज सच बतायें हम कोनो मुल्ला यम और आझम खाँ टाईप का अकल लेस त है नहीं के अपने फायदे के लिए मासूम ठुल्ले को फँसवा दे । मायूस होकर वापस गाँव लौट आए ।

 ठुल्ला आज फेर हमसे पूछ रहा है - भोला भाई जान हमार स्थिति कब सुधरेगी ?

त तुमने उस ठुल्ले को का समझाया ?

हम का समझाते महाराज और हम समझा भी देते त उ ठुल्ला समझ जाता का ????


..मगर हमारे इस नेकदिली से एक बात उ ठुल्ला के समझ में आ गई  के जब तक ठुल्ला लोग मुल्ला यम जैसे नेता के बहकावे में आकर वोट बैंक बना रहेगा तब तक खुदा भी इनका कोई मदद नहीं कर सकता ।  

और हमसे कह रहा था ... भोला भाई ,

ना धर्म पर ना जात पर, अबकी मुहर लगायेंगे सिर्फ विकास पर । 
 

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

खाद्य सुरक्षा - गरीबों की या खुद की ?

खाद्य सुरक्षा विधेयक से कितने और कौन से “भूखों”  का पेट भरेगा ये तो वक्त ही बतायेगा लेकिन जितना मुझे अर्थशास्त्र का थोड़ा बहुत ज्ञान है उस आधार पर मेरे मन में एक शंका उठी । जिसका पंजीकृत अनर्थशास्त्रियों को छोड़कर कोई भी समाधान कर सके तो उसका स्वागत है ।

सामान्य सा अर्थशास्त्र का सिध्दांत है यदि सरकारी दुकानों में आवश्यक अनाज 1 रूपये किलो में मिलेगा तो खुले बाजार में मँहगे चाँवल/गेहूँ  की बिक्री में अन्यंत गिरावट आयेगी । जिसके फलस्वरूप यदि आपूर्ति यथावत चलती रहे तो माँग में कमी होने के कारण चाँवल/गेहूँ के मूल्य गिरावट होना लाजमी है ।

इस देश के जो गरीब किसान है वे अधिकांशत: चाँवल/गेहूँ ही पैदा करते हैं । ऐसे में देश के इन गरीब चाँवल/गेहूँ उत्पादक किसानों के पास दो ही रास्ते बच जायेंगे ।

या तो वे लागत मूल्य से भी सस्ते दामों पर अपना उत्पाद बाजार में बेचें या फिर खेती किसानी छोड़ किसी फैक्ट्री में मजदूरी करें और खुद को खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में समेंट लें ।


ये दोनो ही स्थिति देश के दीर्घकालिक हितों के लिए अत्यंत घातक है । यदि किसान खेतों में अनाज उगाना छोड़ देगा तो आने वाले दिनों में हम खाद्य सुरक्षा कानून के कारण ही खाद्य संकट को शर्तिया आमंत्रण देंगे और यदि किसान अपने उत्पाद लागत मूल्य से कम दामों पर बेचता है तो यह खाद्य सुरक्षा कानून उसके आत्महत्या करने के मार्ग को प्रशस्त करने वाला कानून कहलायेगा ।

इस महत्वाकांक्षी कानून को धरातल पर लागू करने के लिए जरूरी है कि सरकार चाँवल/गेहूँ और अन्य सब्सिडी में बाँटे जाने वाले अनाजों का इतना न्यूनतम खरीदी मूल्य निर्धारित करे कि किसान खेती करने के लिए प्रोत्साहित हो और उसके उत्पादों को यदि बाजार में खरीददार नहीं मिलता तो भोजन गारंटी के जैसा ही उसके उत्पादों को खरीदने की गारंटी की भी व्यवस्था करे ।
लेकिन यदि सरकार ऐसी व्यवस्था कर भी लेती है तो इस कानून के तहत बाँटे गये अनाज के सब्सिडी की राशि हेतु क्या प्रबंध है ? क्या इसके लिए फिर से उसी मध्यम वर्गीय लोगों को बलि का बकरा बनाया जाकर उनके जेब पर डाका डाला जायेगा ?

खैर भूखों की चिंता करने वाली उस करूणामयी सरकार से जनता को क्या उम्मीद करनी चाहिए जिसे सुप्रीम कोर्ट के सामने ये कहकर बेबसी और लाचारी दिखाई कि भले ही देश में लोग भूखों मरते रहें और हमारे गोदामों में अनाज सड़ते रहें पर हम उसे उन जरूरतमंद लोगों को बाँटने में असमर्थ हैं ।

सुनने में आया है कि इस बिल की मूल अवधारणा छत्तीसगढ़ के चाऊर वाले बाबा की सरकार से ली गई है । कितनी ली गई है ये तो विस्तार से पता नहीं पर हाल में ही छ ग सरकार ने राशन कार्डों में मुखिया के तौर पर घर की महिलाओं का नाम अंकित किया है जिसका प्रावधान इस बिल में भी है । लेकिन जिस तरह से छत्तीसगढ़ में पीडीएस सिस्टम है वैसा कोई सिस्टम पूरे देश में है ?

यदि हाँ तो बड़ी अच्छी बात है और यदि नहीं तो फिर इन मूलभूत प्रावधानों की व्यवस्था पहले किया जा कर फिर इस कानून को लागू किया जाना चाहिए वरना ये खाद्य सुरक्षा बिल गरीबों की बजाय अमीर बिचौलियों के खाद्य सुरक्षा का प्रबंध करेगी ।

मीलों हम आ गये मीलों हमें जाना है ...  बस वृत्ताकार रास्ते में देश को बढ़ाना है 

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

टंच माल

चेला भोला शंकर सुबह सुबह अपना कुकुर घुमाते हुए हमारे घर पहुँचा और दरवाजे पर जोर से चिल्लाया – जग गये का महाराज ?

हमारी अधूरी नींद टूटी, इसलिए गुस्से में मुँह से आदतन निकल गया – कौन है बे कुत्ते ?
बाहर से आवाज आई – हम हूँ, आपका परधान चेला , भोलाआआआआ , पहिचानबे नहीं किये का ?
हमने कहा – अरे भोला तू , आ अन्दर आ जा । 
भोला उदास होकर शिकायती लहजे में बोला – का महाराज, आपने हमें कुत्ता बोल दिया । 
हमने कहा – अरे नहीं भोला, उ त हम तुमको को सपना में भी नहीं बोल सकता, हम त झरोखा से झाँक कर देखा त तुम्हारा केवल ई कुकुर ही दिखा इसलिए उससे ही पूछ बैठा । चल छोड़, बता आज सुबह सुबह इधर कैसे ? 
उसका चेहरा हमारे स्पष्टीकरण से ठीक वैसे ही खिल उठा जैसे नेता जी का चुनाव जीतने के बाद । बोला – महाराज, आज का कुछ नया ताजा माल है क्या ?
हमने कहा - कौन सा, सौ टका टंच वाला  ???? 
वो बोला - अब आपका माल त टंचे रहता है, लेकिन सुबह का टाईम है, अगर कुछ धार्मिक टाईप का हो त मजा आ जायेगा, बाबा हेनरी का डे है , पूरा दिन ठीक रहेगा ।

हमने कहा – अबे ई बाबा हेनरी कौन है बे ?

भोला ने कहा – महाराज आज मंगलवार है और ई वानर राज हनुमान का दिन है कि नई ?
हमने कहा – हाँ त ?
वो बोला – हमने उनका स्वीट नेम रखा है, हनुमान का “हे” और वानर का “नरी” कुल मिलाकर हेनरी
हमने कहा - अच्छा , साले अब तुम भगवान लोगों को भी उँगली करने में बाज नई आ रहे हो बे ।
वो बोला- महाराज हमारे भगवान इत्ते कमजोर नई हैं के हमारे उँगली करने से उनका कुछ बिगड़ जायेगा ।
हमने कहा – ई बात त है भोला ।
वो बोला – त फेर महाराज , बताओ कुछ शास्त्र पुराण का बात वरना हम समझ लेंगे आप भी ठग बाभन हो ।
हमने कहा - अबे सुन भोला , हम उ कथाबाँचने वाला ठग बाभन नई हैं, ओरिजनल हैं , तू क्या समझा है हमको ? हमने भी गूगल बाबा से पूरा वेद पुराण का जानकारी इकठ्ठा किया है लेकिन उसका उपयोग केवल अपनी शुद्धि के लिए करते है, माल बटोरने के लिए नहीं, समझा ।
उसने पहली बार मेरा लगभग उपहास उड़ाते हुए कहा - ले त फेर कुछ पुराण के बारे में बताओ , स्वर्ग नरक कौन जाता है ।
हम बोले – अबे साले बबलू के अजन्में बौद्धिक औलाद , तू हमरा उँगली करता है । त सुन , हनुमानजी से याद आया ...
गरूड़ पुराण में लिखा है। माईण्ड ईट, हमने नहीं लिखा गरूड़ पुराण में लिखा है -

“ एकांत स्थान में मिली हुई परस्त्री को देखकर भी जिनके मन में कामवासना का आगमन नहीं होता और वे पुरुष जो उस स्त्री को अपनी माता बहन व पुत्री के रूप में देखते हैं, ऐसे लोग स्वर्ग में जाते हैं।“  

वो बोला -जाना ही चाहिए महाराज, ऐसा आदमी जो जिन्दगी भर इहाँ एतना कंट्रोल कर खुदे अपना जीवन नरकमय बना रखा है, उ का त मरने के बाद स्वरग का फैसीलिटी मिलना ही चाहिए ।
पर ई बताओ महाराज, उँहा जाने के बाद स्वरग में ई सब ताँक-झाँक एलाऊड है का

हम बोले - अबे हमका का मालूम , हम कोनो स्वरग से लौटकर आया हूँ का ?
अऊर सुन , अईसे भी गरूड़ पुराण के इ नियम के अनुसार हमको स्वरग का एलाटमेंट त बिल्कुल भी नई होने वाला ।

वो बोला – हमको भी नई होगा महाराज ...हम भी कुकुर हगाने के बहाने एही कारण से सुबह सुबह सैर सपाटा करते हैं।

हम कहा– ले ना बे, नरक में भी जायेंगे त कौन सा क्लाईमेट चेंज हो जायेगा ? इहाँ पर मन्नू मामा ने केतना बढ़िया सेम टू सेम माहौल बना के रखा है ।

वो बोला – महाराज ई त पूरा प्रवचन का पंच लाईन है, एकदम फ्रेश टंच माल है ।

 – जय जोहार 

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

थ्री ईडियट - अहमद, पिल्ले और हम

 सावन का महीना चल रहा है और कई दिनों बाद आसमान साफ था , सुबह सुबह सूरज के ड्यूटी पर आने की उम्मीद थी । बचपन में कक्षा आठ के हिन्दी द्वितीय के परीक्षा में अक्सर ये पूछा जाता कि बरसात के दिनों में मोहन दास गाँधी जी की माँ अक्सर भूखी क्यों रहती थीं और मास्टर जी के द्वारा इसे आईएमपी सवाल बता कर जवाब भी रटाया जाता था कि वे सूर्य देवता के दर्शन किये बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थीं ।

उसी किताबी ज्ञान और स्मृति के आधार पर आज के मौसम के बारे में ये कहा जा सकता है कि गाँधीजी की माँ आज भरपेट  खाना खा सकेंगी, ऐसा माहौल बनने के पूरे आसार हैं । भरपेट इसलिए लिखा क्योंकि संसद के मानसून सत्र तक तो मन्नू मामा का फूड सिक्योरिटी बिल लागू रहेगा ही और छोटू मामा (मोंटेक सिंह ) ने गरीबी तय करने वाली नई गाईड लाईन भी जारी कर दी है । 

आज दैनिक परम्परा के विपरीत हम भी सुबह जल्दी उठ गये और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत परिभ्रमण के लिए निकल पड़े । लेकिन बाजू वाली गीता के सर पर हाथ रखकर यदि हमसे कहलवाया जाय तो सच्चाई ये है कि हम रात भर सो ही नहीं सके इसलिए जागने का प्रश्न ही नहीं उठता । खैर हमने सुन रखा था कि सुन्दर दिखने के लिए सुबह सुबह शहरी सभ्रांत महिलायें स्पोर्टी लुक में विचरण करती हैं, जिसे वे अपनी भाषा में जॉगिंग कहती हैं । उनके स्पोर्टी लुक के प्रात:कालीन दर्शन के प्रलोभन में आकर हम चिड़ियों के चहचहाते ही सुबह की सैर को निकल पड़े वरना आजकल के महानगरीय संस्कृति में कौन ऐसा कोल्हू का बैल, उल्लू का पठ्ठा है जो सुबह 6 बजे अपने नर्म और वातानूकूलित बिस्तर को ओके, टा-टा, बाय-बाय कहता है । 

जब पत्नी के दबाव में जूते खोलकर मंदिर के गर्भ गृह के सामने आ ही गये हैं तो प्रसाद न खाने के अपराधभाव से क्यों ग्रसित हों । इसी सिध्दांत के आधार पर हमने अपने जवानी के दिनों वाला ट्रैक सूट निकाला और उसके भीतर किसी तरह खुद को स्थापित कर निकल पड़े ग्यारह नम्बर की बस पर । अमूमन सभ्य लोगों की बौद्धिक भाषा में इसे मॉर्निंग वॉक कहते हैं । 

 ( वैधानिक सूचना - यहाँ पर हम एक तथ्य बिल्कुल स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि “जवानी के दिनों वाला”  से ये तात्पर्य बिल्कुल ना लगायें जवानी दिन गुजर चुके है बल्कि यथार्थ तो ये है कि वो दिन आज भी पास्ट परफेक्ट टेन्स न होकर प्रजेंट परफेक्ट कंटिनिवस टेन्स में है । ) 

जब गाँव में ठिकाना था, तो हमें रोज झझकोर कर दादी कहती थी- “सुबह जल्दी उठकर ताजी हवा लेने से दिल और दिमाग दोनो तन्दरूस्त रहता है, और घास पर पड़ी ओस की बूंदो पर नंगे पाँव चलने से आँखो की रोशनी तेज होती है।” 

खैर उनकी नसीहत पर तो कभी अमल किया नहीं लेकिन आज स्पोर्टी लुक की कानो-सुनी थ्योरी को आँखो देखी में परिवर्तित करने के लिए चुपके से घर के बाहर निकला । चुपके से निकलने का कारण सिर्फ यही था कि श्रीमती जी यदि हमें इस रूप में देख लेती तो वैसे ही कोहराम मचा कर आरोप लगाती जैसे दिग्विजय सिंह जी किसी भी दुर्घटना के पीछे भगवा साजिश का दावा करते हैं और हम अपनी सारी उर्जा लगाकर भी खुद को बेदाग साबित नहीं कर पाते क्योंकि हमारी पत्नी, राघवजी की अर्धांगिनी की तरह उदार एवं खुले विचारों वाली है ही नहीं ।


पत्नी द्वारा तय की गई एलओसी को बगैर सूचना के अनधिकृत रूप से लाँघ कर जैसे ही कालोनी के अहाते से बाहर आये, वैसे ही हमें इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि यहाँ ना तो ताजी हवा है और ना हरी हरी घास जिसमें ओस की बूँदे पड़ी हों । जो मौजूद है, वो केवल सीमेंट कांक्रीट की सड़के और ताजी हवा के नाम से नालियों से निकलती बदबूदार गंध । जिसमें रही सही कसर उन भैंसों का झुण्ड पूरा कर रहा था, जिसका मालिक इलाके का वही दबंग नेता था, जिसके तबेले को पिछले पाँच सालों से नगर निगम का पूरा अमला इस रिहाईशी इलाके से बाहर निकालने में ठीक उसी तरह असफल रहा जैसे हमारी सरकार अवैध बांग्लादेश के घुसपैठियों को निकालने में रही । 

हमने सोचा जब एक बार कालोनी की सीमा लाँघ ही गये हैं तो सामने नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक चले चलते है । अगर रम्भा, मेनका, उर्वशियों के स्पोर्टी लुक का दर्शन लाभ नहीं भी मिले ( हकीकत में जिसके कारण ही हम सैर को निकले थे ) तो कम से कम ठेले वाले रामखिलावन के यहाँ एक कटिंग चाय ही पी लेंगे । वैसे भी कई महीने हो गये कैटल क्लास के स्पेशल ठेले की चाय पीकर खुद को आम आदमी फील किये हुए । 

कालोनी के अन्दर से लेकर नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक मॉर्निग वॉक की बड़ी गहमागहमी थी । स्वास्थ्य के प्रति जागरूक इन प्राणियों की प्रजाति को पहनावे ओढ़ावे और चाल ढाल से लिंग, क्षेत्र, जाति के आधार पर पृथक करना अत्यन्त  दुष्कर कार्य था ! महिलायें मनचाहे शारीरिक आकृति को आत्मसात करने में सक्षम पैण्ट-शर्ट में थी, जिसे पढ़े लिखे लोग जॉगिंग ट्रैकसूट कहते हैं , तो कई पुरूष रविशंकर, रामदेव और ओशो टाईप से चोंगानुमा नाईट गाऊन पहने हुए थे, इसलिए हमने इन्हे कार्य के आधार पर विभाजित करने का निर्णय लिया । 

त्वरित शोध से ये निष्कर्ष निकला कि मॉर्निग वॉक में अमूमन दो प्रकार के लोगों की बहुतायत है – 

पहले वे जो किसी भी मकान के अहाते से बाहर झाँक रहे पेड़-पौधे पर मुस्कुरा रहे फूल को मकान मालिक के जागने से पहले ही तोड़कर चोरी कर लेते हैं, जिसे बाद में नहा धोकर निर्मल तन और कलुषित मन से भगवान को रिश्वत पेशकर अपनी माँगे स्वीकृत करने हेतु दबाव बनाते हैं ।


दूसरे वे जो विदेशी नस्ल के कुत्ते को घुमाते हैं, ये अलग बात है कि उन्हे देखकर अबोध बालक भी बता देगा कि वे कुत्ते को घुमा रहे हैं या कुत्ता उनको । एक बार तो एक नवयौवना का उसके पामेलियन कुत्ते के प्रति प्यार और स्नेह देखकर अपने पुरूष रूप में मानव होने का अफसोस हुआ और एक तीव्र इच्छा जागृत हो गई कि काश मैं भी अंग्रेजी जात का पट्टाधारी कुत्ता होता । 

जैसे भी हो इन दिव्यात्माओं के दर्शन लाभ करते हुए कब नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक पहुँच गया पता ही नहीं चला । हमारा सोशियल सर्किल ठीक वैसे ही है, जैसे धोबी के कुत्ते का होता है । उसे या तो उसके घर के लोग जानते हैं या घाट पर कपड़े धोने वाले । क्योंकि इस शहर में जब से ठिकाना जमाया है , “मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक” वाली कहावत हम पर सौ फीसदी लागू होती है । 

चाय ठेले वाले राम खिलावन को हमने कहा – भैय्या, एक ब्लैक लेमन टी देना । ठेले वाले ने हमें इस अंदाज से देखा जैसे कोई नेता चुनाव जीतने के बाद मतदाता को देखता है । चाय की गंजी में खौलते पानी में पहले से इस्तेमाल की गई चायपत्ती को डालते हुए हमसे बोला – सर, इस इलाके में नये आये हो क्या ? 

हमने कहा – नही प्राण साहब, इस इलाके में तो पिछले एक साल से हूँ , हाँ तुम्हारी दुकान पर पहली बार आया हूँ । लेकिन तुमने ऐसा क्यूँ पूछा ?


रामखिलावन बोला – प्राण साहब के बड़े फैन लगते हैं आप सरजी, हमारा नाम रामखिलावन है , इधर ब्लैक लेमन टी नहीं चलता, उसे“लाल चाय नींबू मार के”  कहते हैं । बैठिये, आपने हमको प्राण साहब कहा इसलिए आपको साफ गंजी में बना कर दे रहें हैं, इस्पेशल ।  

मैं उसके ठेले के सामने लगी पटिया पर बैठ गया । वहाँ कुछ बुद्धजीवी टाईप का हुलिया बनाये, कुछ गली मोहल्ला छाप नेता लोगों के बीच एक गंभीर चर्चा चल रही थी । 

“ कुत्ता शब्द साम्प्रदायिक है या सेकुलर ”  

बहस गंभीर चल रही थी । रामखिलावन ने हमें इस्पेशल चाय थमाते हुए पूछा – सरजी , आप क्या कहते हो ? कम्युनल या सेकुलर ? 

हमने एक चुस्की लगाई और उससे कहा – देखो रामखिलावन, कुत्ता अगर गाड़ी के नीचे आया तो सेकुलर , किसी को काट खाया तो कम्यूनल और गाड़ी में बैठकर आया तो इंटेक्चुअल । 

और ई कौन टाईप का कुत्ता है सरजी ? रामखिलावन ने टोस्ट के लिए जीभ लपलपाते हुए एक देशी आवारा कुत्ते की ओर इशारा करते हुए पूछा । 

हमने कहा- पॉलिटिकल । 

तभी अचानक भीड़ में एक चेहरा जाते हुए दिखा , वो मेरा पुराना लंगोटिया यार था, जिससे कालेज के बाद कई सालों से मिला नहीं था । वही है या कोई और ? इस कश्मकश में वो थोड़ी दूर निकल गया । पर जब यकीन हो गया कि वही है, तो उसे रोकने के उद्देश्य से पीछे से मैने जोर से चिल्लाया........

     
 -  अबे पिल्ले !
वो पीछे पलट कर देखा और तेजी से मेरी ओर लपका.....  

और सीधे मेरा कालर पड़ा ....
अचानक तेजी से घटनाक्रम बदला , 


* पिल्ले कहने से चाय ठेले के आसपास कुछ लोगों की भावनायें आहत हो गई  ,

* भीड़ में कुछ लोग उसके द्रारा की जाने वाली किसी भी हरकत के अग्रिम मदद को तैयार दिखे ,

* लेकिन इस वाकये से एक अर्धअंगधारी बुद्धजीवी के सोने की चिड़िया उड़ गई और उसने तत्काल अपने मोबाईल से मेरे इस दुर्व्यवहार पर अपना फेसबुक स्टेटस अपडेट कर तहलका मचाने का प्रयास किया ।

* उस अपडेट पर कुछ सेकुलर लोगों ने इसकी "कड़ी"  निन्दा की ...

* कुछ समर्थकों ने मेरी लानत मलामत भी की .....

* कुछ कौमी समर्थकों ने मेरे वॉल पर आकर अपनी नैसर्गिक टिप्पणी की .....

* एक उत्साही कौमी समर्थक ने दो कदम आगे आकर मुझे मोदी का बच्चा कहा ....  

( शायद उसकी भावना मेरे लिए नेक हो और वो मुझे मोदी का बच्चा कह  उत्तराधिकार के रूप में  मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे गुजरात का मुख्यमंत्री बनना चाहता हो )


* एक और कौमी समर्थक को मेरा पाजामा ढीला नजर आने लगा .... 

( शायद अमेरिका के किसी एयरपोर्ट में उसे गहन सुरक्षा जाँच से गुजरने का अनुभव हो ) 

* बजरंगियों ने मुझे राष्ट्र का भविष्य बताया और मुझे देश की जरूरत बता कर मेरी भूली हुई शक्ति और वरदान की याद उसी तरह दिलाने की कोशिश की जैसे जामवंत ने लंका जाने से पहले हनुमान जी को दिलाई थी । 

( फिर अचानक वे गायब हो गये , शायद ये सोचकर फूलों की माला लेने गये होंगे कि यदि भीड़ से बच गया तो शौर्यजूलूस निकालेंगे और यदि मर खप गया तो लाश को फूलों से ढककर शहर में घूमायेंगे । दोनो ही स्थिति में दुकानो को लूटने का और राह चलती महिलाओं को छेड़ने की सुविधा की पूरी गारंटी थी । )  

* कुछ लोगों ने मुझे अपना नैतिक समर्थन इसलिए दिया क्योंकि जुम्मन चाचा का लड़का उनकी बहन को घूर कर देखता है ।  


* कुछ कंफ्यूजियाये टाईप के लोग जिन्हे इस वाकये के बारे में कुछ पता नहीं था, उन्होने SMS पर हमें समझाइश टीप लिखा – महाराज आपसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं थी । आपको किसी को इस तरह सार्वजनिक रूप से कुत्ते का पिल्ला नहीं कहना चाहिए । 

* मैग्सेसे पुरूस्कार पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा एक केजरीवाल टाईप के आदमी ने अर्धअंगधारी को तत्काल आदेशात्मक सलाह दी कि ऐसे पड़ोसी से तत्काल सम्बन्ध तोड़कर दोनो घर के बीच अम्बूजा सीमेंट की दीवार खड़ी कर देनी चाहिए ।  

अर्ध अंगधारी बुद्धजीवी को सलाह जँची ।  उसने हमे तत्काल अनफ्रेण्ड किया लेकिन अभी तक दीवार खड़ी नहीं की है क्योंकि हमें उनका हमाम अब भी नजर आ रहा है । 

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ओ तेरी ....  इन सब तेजी से हुए घटनाक्रम के कारण मैं अपने ट्रेक से ही उतर गया । चलिए मुद्दे पर आते हैं और मार्निग वॉक की स्टोरी कंटिन्यू करते हैं... 

तो मैं कहाँ था .. हाँ ...  मैने चिल्लाकर कहा ---  अबे पिल्ले ! 

वो पीछे पलट कर देखा और तेजी से मेरी ओर लपका.....  


और सीधे मेरा कालर पड़ा ....

उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, पता करना मुश्किल था कि खुशी है या आश्चर्य ? 

उसने चहकते हुए कहा – अबे साल्ले बाभन, कहाँ है बे आजकल, और क्या कर रहा है यहाँ ?
मैने कहा – अबे पप्पू, मैं यहीं सेटल हो गया हूँ पिछले एक साल से । 
उसने कहा – चल घर चल । मेरी मिसेस बहुत खुश हो जायेगी तुझे देखकर, बार बार पूछती है कौन है ये तुम्हारा दोस्त बाभन , जिसकी हमेशा चर्चा करते रहते हो ?  
मैने कहा – नहीं यार आज मुझे जरूरी काम निपटाना है, शाम तक फ्री हो जाऊँगा फिर दो दिन तक फुरसत है । 
उसने कहा – अच्छा ! चल शाम को किसी बार में आराम से बैठकर महफिल जमाते हैं, वहीं इत्मीनान से बातें करेंगे । 
फिर उसने मेरा फोन छीनकर किसी को कॉल किया  -  अबे अहमद मियाँ

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अबे कौन नहीं , पप्पू पिल्ले बोल रिया हूँ बे कमीने । 
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अबे हाँ बे, ये मेरा नम्बर नहीं है लेकिन जिसका नम्बर है, उसका नाम सुनेगा तो चौंक जायेगा बे ! 
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अबे किसका नहीं, अपना लंगोटिया यार बाभन का फोन है बे । हमारे शहर में घूम रिया था मियाँ । हमसे टकरा गया बे .. पकड़ लिया हूँ साले को ! शाम को चाँदनी बार आ जईयो बे । और हाँ रजिया भौजी को बता के अईयो के बाभन आया है .. महफिल रात भर चलेगी । 

मेरा फोन वापस करते हुए पप्पू बोला – चल बे बाभन तेरा दो दिन का प्रोग्राम बुक हो गया है । आज होटल में फुल नाईट बकलोल पार्टी, कल दोपहर का खाना मेरे घर पर क्योंकि अहमद मियाँ कह रहा है – रजिया भौजी ने हुक्म जारी किया है कि जब भी पप्पू भैय्या और आप मिलते हो , हमेशा बाभन की ही बातें करते हो, अब आये हैं तो हमें भी मिलना है , रात की दावत तो हमारे घर पर ही होगी । 

हम और पप्पू पिल्ले चाँदनी बार पहुँचते इससे पहले ही अहमद मियाँ वहाँ पीठ किये हुए खड़े मिले । जैसे ही हम गाड़ी से उतरे उन्होने कमर से शरीर को समकोण बनाकर कहा – अबे कमीने बाभन, तुस्सी राघव जी हो बे,  तोहफा कबूल करो । 

हमने आदतन पप्पू को धकेलते हुए कहा – अबे पिल्ले ...  तुझे कह रिया है बे ।  

लेकिन इस बार किसी की भावना आहत नहीं हुई ..  ना तो पिल्ले की और ना अहमद मियाँ की ।

तीनो खुले आसमान के नीचे चाँदनी में नहाते हुए जाम टकराया और एक सुर में तरन्नुम में गाया ...  

“ खुदा का शुक्र है वरना गुजरती कैसे ये शाम 
  शराब जिसने बनाई , उसे हमारा सलाम ॥ ”