शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

कुम्भकर्ण – एक धार्मिक चरित्र



हमारी सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि हम पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर किसी भी चरित्र का आँकलन करते हैं। अगर निरपेक्ष भाव से चिंतन करें तो कभी कभी जिस चरित्र को हम बुरा कहते हैं, वो आदर्श प्रतिमान होकर अनुकरणीय भी हो सकता है ।

कभी कभी जब जीवनगाड़ी बिना उतार चढ़ाव के नीरस होकर सपाट चलने लगे तो मैं स्वयं को आनंदित करने के लिए कुछ देर अपने कष्टतम क्षणों को याद कर जबरिया उदास हो जाता हूँ और व्यर्थ का चिंतन करने लगता हूँ फिर जब सामान्य हो जाऊँ तो अपनी वर्तमान स्थिति पर एक संतुष्टि और आनन्द प्राप्त होता है । यद्यपि यह किसी उपलब्धि प्राप्ति का आनन्द ना होकर क्षद्म दुख से निजात पाने की संतुष्टि है लेकिन फिर भी है तो आनन्द ही जो सपाट चल रही जिन्दगी में नये उत्साह का संचरण तो करती है ।


इसी प्रक्रम में कल शाम एक निर्जन स्थान पर एकाकी बैठा ऐसे ही किसी व्यर्थ चिंतन में लीन होकर अपने बुरे दिनों को याद कर रहा था कि अनायास बिना किसी संदर्भ के कुम्भकरण के चरित्र का खयाल आया । वही कुम्भकर्ण जिसे हर दशहरे में रावण के बराबर खड़ा कर इसलिए जलाया जाता है क्योंकि उसका अपराध केवल इतना ही था कि वह रावण का भाई था ।


यदि निरपेक्ष भाव से चिंतन करें तो कितना आदर्श चरित्र था कुम्भकरण का । चौंकिये मत यह कोई व्यंग नहीं पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ ।


कुम्भकरण को तब जगाया गया जब विभीषण, रावण को छोड़कर शत्रु सेना में शामिल हो चुका था । कुम्भकर्ण को पूरी घटनाओं से अवगत करया गया तो उसने भी विभीषण की तरह रावण को समझाने हेतु अपनी पूरी सामर्थ्य लगा दी । किंतु वो रावण था, अगर समझ कर अपनी गलती मान ही जाता तो फिर एक महाज्ञानी पण्डित आखिर रावण में परिवर्तित ही कैसे होता ? रावण ने कुम्भकर्ण से कहा कि मुझे उपदेश नहीं, समर्थन चाहिए और यदि तुम नहीं दे सकते तो विभीषण की तरह मुझे छोड़कर जा सकते हो ।


कुम्भकरण ने त्वरित उत्तर दिया – ये जानते हुए भी कि आप सर्वथा गलत है और मेरे समझाने का भी आपको कोई असर नहीं हो रहा है फिर भी मैं विभीषण की तरह इस विपत्तिकाल में आपका साथ नहीं छोड़ सकता और पाप-पुण्य की परवाह किये बिना अंतिम श्वांस तक आपका ही साथ देकर अपना धर्म निभाऊँगा । मेरा धर्म और कर्तव्य यही है कि मैं अपने स्वजनों को सही गलत का ज्ञान कराऊँ और यदि फिर भी वो ना माने तो विपत्तिकाल में बिना सोचे उसका अंतिम श्वांस तक पूरे मनोयोग से साथ निभाऊँ ।


कुम्भकर्ण द्वारा रावण का साथ देना भले ही सबकी नजर में पाप और अधर्म रहा होगा पर एक भाई और स्वजन होने के नाते कुम्भकर्ण से ज्यादा धार्मिक और चरित्रवान व्यक्ति कौन हो सकता है ? विभीषण भले ही रामचन्द्र का साथ पाकर धार्मिकता का चोला पहन लंकाधिपति हो गया किंतु आज भी उसका नाम, उसका चरित्र उतने ही निरादर से लिया जाता है, जितना की रावण का ।


जो व्यक्ति अपने स्वजनों का साथ उनके विपत्तिकाल में छोड़ दे, उससे बड़ा अधर्मी और नीच कोई नहीं, भले ही आप बौद्धिक तर्कों से उसे सही ठहरा दें पर वह कभी भी अपने उस चरित्र के लिए सम्मान नहीं अर्जित कर सकता । अगर आप मुझसे सहमत नहीं तो अपने परिवार में किसी नवआगंतुक शिशु का नाम विभीषण रख कर दिखाईये जिसे स्वयं प्रभु राम ने ससम्मान लंकाधिपति घोषित किया था ।

!! जय श्री राम !! 

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

पोस्ट वेलेंटाईन डे




जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है वैसे ही कल मैं भी उत्साही युवाओं के हरकतों को देखकर जोश में आ गया । पूरे उम्र के हौसले को इकठ्ठा कर अपनी मालकिन से कहा ... हे अखिलेश्वरी .. यू आर माई कांस्टिट्यूशनल वेलेंटाईन ... हैप्पी वेलेंटाईन डे टू ओंली यू । 



ये सुनकर वो बिफर पड़ी और बोली .. हाऊ डेयर यू टू कम्पेयर मी विथ द ओल्ड सैंट वेलेंटाईन ? अब मैं आपको इतनी बूढ़ी लगने लगी हूँ

हमने गधे के सिर की तरह सिर हिलाकर कहा ... नहीं भागवान। 

थानेदार जैसे एक रिक्शे वाले से आदरपूर्वक पूछता है उसने लगभग उसी लहजे में मुझसे कहा ये कैसा जवाब है , सिर का हिलना तो हाँ कह रहा है और जबान से ना निकल रही है । 

मैने धोबी के गैर कामकाजी चौपाये  के चरित्र को ध्यान में रख तत्काल सफाई पेश किया –  सिर पर दिमाग का कब्जा है और जुबाँ पर दिल का । 

अचानक उसने अधिवक्ता का चरित्र धारण किया और मुझे कटघरे में खड़ा करते हुए यक्ष प्रश्न दागा अच्छा , दस साल पहले तो आपके दिमाग और दिल दोनों कहते थे कि मैं तुमको शीशे की लालपरी लगती हूँ । अब क्या हुआ ?? 

मैने अपराधभाव से कहा मालकिन दस साल में तीन सरकारे बदल जाती है मैने तो केवल नैतिक विचार बदला है । 

उसने दार्शनिक  अंदाज में कहा - लेकिन आप तो हमेशा कहते हो कि  शराब जितनी पुरानी हो उतना ज्यादा मजा देती है । 

मैने अपना सारा अनुभव समेट कर कहा- ले इसमें तो हमारा फोर्टे है ... मजा वजा कुछ नहीं वो केवल कहने की बातें है .. दरअसल कमब्ख्त जितनी पुरानी होती है उतनी ही मँहगी होती जाती है । 

आपने मेरी इस जानकारी को पता नहीं क्या समझा पर उसने इसका मतलब बखूबी समझा और घर के खर्चे कम करने के लिए काम वाली बाई को मना कर दिया । अब मैं क्या कर रहा हूँ ये पूछ कर मेरी बेईज्जती और खराब मत करो । वैसे भी ये बेलन टाईन डे शारीरिक, आर्थिक और मानसिक तीनो तरह की पीड़ासुख की अनुभूति करा गया । 

आज सुबह से बसंत पंचमी पर मैं उससे याचना कर रहा हूँ .. एनी वे माई व्हाईट ड्रेस्ड बसंती ग़ॉडेस ... आई अपोलाईज एंड करेक्ट माई वर्ड .. आई एम यूअर बैल एण्ड यू आर माई बैल इन टाई .. ओ के , नाऊ विथ हम्बल रिक्वेस्ट प्लीज रिअपाइंट माई लेडी कुलिग "द कामवाली बाई" । 

कामवाली बाई के पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया विचाराधीन है लेकिन जिन-जिन सज्जनों का वैलैंटाईन डे सफलता पूर्वक मन गया हो निश्चित रूप से वे आज क्रेडिट कार्ड डे मना रहे होंगे.. परमात्मा उन्हे कर्ज अदा करने की शक्ति दे और मुझे चौका बर्तन करने की  


बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

Kiss Day मतलब चाटन दिवस


किस डे मतलब चाटन दिवस .. अरे नहीं भाई किस डे को चुम्मा दिवस नहीं कह सकते हैं, तकनीकी रूप से चाटन दिवस ज्यादा सटीक है क्योंकि बैल इन टाईन वीक है । अब किसी ने बैल को चुम्मा लेते तो देखा है क्या ? नहीं ना, मैने भी उसे हमेशा चाटते ही देखा है ।

वैसे भी जितने उत्साही युवक -युवतियाँ है ( आम तौर पर इस तरह के त्यौहारी बुजुर्ग भी चिर युवा होते है)  वे इस दिन फ्राँस की महान सांस्कृतिक आचरण को ही अंगीकृत कर इमरान हाशमी बनना ही पसंद करते हैं और फ्रेन्च किस को चुम्मा की बजाय चाटना कहना ही ज्यादा उपयुक्त नहीं होगा ??? 


इसलिए किस डे मतलब चाटन दिवस .. ठीक है ?

हमारा देश त्यौहारों का देश है .. यहाँ तो बड़े उत्सवी प्रजाति के लोग बसते हैं । वे किसी भी उत्सव को अपने अपने तरीके से मना ही लेते हैं । कुछ तो इन त्यौहारों को अपने दैनिक जीवन चरित्र में ही शामिल कर लेते हैं ।

एक ही त्यौहार को अलग अलग तरीके से मनाना भी सांस्कृतिक एकात्मवाद का परिचायक है । चाटन दिवस भी हमारे यहाँ कई तरीकों से मनाया जाता है । चाटने के कुछ मुख्य भारतीय तरीके जो साल भर
24X7 मनाये जाते है उनके प्रकार निम्न हैं ...

1. दिमाग चाटना
2. उँगलिया चाटना
3. तलवा चाटना
4. थूक के चाटना
5. तशरीफ चाटना

वैसे इन सभी प्रकारों का विस्तृत विवरण भी लिख सकता हूँ लेकिन आप सभी समझदार और जानकार है, सभी प्रकारों के चाटुकारों से भली-भाँति अवगत होंगे ।

ज्यादा लिखूँगा तो फिर आप ही कहोगे .... अबे महाराज तुम तो साले 1 नम्बर के चाटुकार हो ।

अंग्रेजी की डिक्शनरी में kiss का अर्थ लाड़ दुलार करना भी है । आप सब मुझे सदैव ये वाला किस करते रहें है उम्मीद है हमेशा ऐसे ही किस करते रहेंगे । 


वंस अगेन हैप्पी
 “चाटन डे"...चाटिये मगर ध्यान से कहीं लार टपक ना जाय  

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

कृष्ण ईवटीजर ही नहीं शातिर चोर भी




कभी कभी जब कुछ काम नहीं होता तो फालतू लोगों के बयान दिमाग में आने लगते है । शायद इसी लिए कहा गया है "खाली दिमाग शैतान का" । ऐसा ही वाक्या अभी अभी मेरे दिमाग के साथ हुआ चूँकि अब दिमाग शैतान का था इसलिए सीधे जयपुर पहुँचा और प्रसून जोशी से टकराया । 

विगत दो वर्षों से पुष्कर में लगने वाला गदर्भ मेला अब जयपुर में लगने लगा है । इसी मेले में नन्दी ने अपने बयान से खूब सुर्खियाँ बटोरी । सुर्खियाँ इसलिए क्योंकि आजकल विवादास्पद होकर ही सुर्खियाँ बटोरी जा सकतीं है वरना चौथे स्तम्भ को बड़ी जिम्मेदारी उठाने एवं सत्ता का जहर पीकर माँ के कंधो पर रोने वालों के अलावा कोई सुर्खियाँ कहाँ दिखती है । 

सुर्खियाँ बटोरने की दौड़ में प्रथम स्थान हेतु प्रयासरत प्रसून जोशी को काफी मायूसी हुई होगी क्योंकि उनके बयान से किसी की धार्मिक भावनायें आहत नहीं हुई और वे नन्दी से पिछड़ गये । प्रसून ने यहाँ पर बहुत बड़ी तकनीकि भूल कर दी । या तो उन्हे किसी ऐसे समुदाय के इष्ट पर टिप्पणी करनी थी जिनकी भावनायें आहत हो जाती हैं या फिर भरी दोपहरी सपने देखने वाले प्रवीण तोगड़िया से पहले ही मैच फिक्स कर लेना था । 

जबसे पता चला है कि कृष्ण गुजरात के द्वारिका में शिफ्ट हो गये थे, वो लालू और मुलायम जैसे सेकुलर यादवों के इष्ट भी कहाँ रह गये हैं जिससे उनकी भावनायें आहत हो ।

खैर प्रसून बाबू मैं आपके महाज्ञान को जरा दुरूस्त करना चाहता हूँ । कृष्ण केवल ईव टीजर ही नहीं थे वे शातिर चोर भी थे । गोकुल में ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसमें उन्होने माखन चोरी नहीं की होगी । 

लेकिन यदि कृष्ण के बारे में कुछ गंभीर कहना है तो पहले उन्हे आत्मसात कीजीये । किसी गदर्भ सम्मेलन में चिंता कर कृष्ण को नहीं समझा जा सकता । उसके लिए मीरा और सूर जैसी लगन चाहिए । 

प्रसून बाबू आप गीतकार अच्छे हैं कभी कभी दूसरों के गीत भी पढ़ लिया कीजीए । कभी जानने का प्रयास किया है जब उद्धव गोपी प्रसंग ? देखिए कैसे गोपिकायें कृष्ण के विरह में तड़प रहीं हैं । क्या आपकी नजर में ऐसी कोई स्त्री है जो अपने मुहल्ले में किसी ईवटीजर को ना पाकर ऐसी विरह वेदना से भर जाती है । अपनी बहन और बेटी से ही पूछकर देखें कि जिस दिन उन्हे कोई ईवटीजिंग नहीं करता है तो क्या वे दुखी होकर खाना-पीना छोड़ देती हैं ? 

एक बार महसूस कर देखें कि कृष्ण की लीला और ईव टीजिंग में कितना बुनियादी फर्क है फिर आप अपनी माँ से यही कहेंगे “मैं तुझे बतलाता नहीं, कितना घटिया सोच सकता हूँ मैं माँ “ और आपके तारे दिन में ही जमीन पर आ जायेंगे । 

खैर बात निकली है तो ये भी कहना चाहूँगा कि कृष्ण पर कोई कितना भी कीचड़ उछाले कम से कम मेरी भावनायें आहत नहीं होती और ना ही गुस्सा आता है क्योंकि मेरा कृष्ण इतना कमजोर नहीं जो किसी के कीचड़ उछालने से मैला हो जायेगा । मुझे अगर कुछ आता है तो सिर्फ प्रसून जैसे लोगों की बुद्धि पर तरस । 

जो भी मित्र प्रसून जोशी के बयान से सहमत हो उनके चिंतन के लिए सूरदास के उद्धव-गोपी संवाद के कुछ अंश ....


ऊधौ हम आजु भईं बड़ भागी ।
जिन अँखियन तुम स्याम बिलोकेए ते अँखियाँ हम लागीं ॥
जैसे सुमन बास लै आवतए पवन मधुप अनुरागी ।
अति आनंद होत है तैसेंए अंग.अंग सुख रागी ॥
ज्यौं दरपन मैं दरस देखियतए दृष्टि परम रुचि लागी ।
तैसैं सूर मिले हरि हम कौंए बिरह बिथा तन त्यागी ॥