बुधवार, 1 जनवरी 2014

स्त्री विमर्श गोष्ठी

आमतौर पर किसी भी वैचारिक गोष्ठी में आप जायें तो मंच पर विचित्र सी मुद्रा बनाये कुछ बौद्धिक लबादे कुर्सी पर जमें हुए मिलेंगे । ऐसा नहीं है कि उनमें सब के सब लबादे ही हों , कुछ बहुमुल्य गठरी भी होते हैं ।

गोष्ठी का अर्थ होता है, आपसी संवाद द्वारा विचारों का आदान प्रदान । लेकिन इस प्रकार के कार्यक्रम में गोष्ठी के नाम पर विचार का एक पक्षीय प्रवाह दिखाई देगा और मंच तथा नीचे बैठे लोगों के बीच वक्ता और श्रोता का सम्बन्ध स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है ।

ऐसे कार्यक्रमों को गोष्ठी कहना ठीक वैसा ही है, जैसे हनी सिंह के स्टेज शो को संगीत समारोह ।

लेकिन जब भी समय होता है अथवा अवसर मिलता हैमैं ऐसे कार्यक्रमों में ( माने के गोष्ठियों में , ना कि हनी सिंह के मुजरे में ) जाना बेहद पसंद करता हूँ और गुमनाम सा पीछे की पंक्ति में बैठकर पूरी तल्लीनता से वक्ताओं को सुनने का गंभीर प्रयास करता हूँ ताकि उनके पास जितना ज्ञान हो उसे आत्मसात कर सकूँ और कितना कचरा भरा पड़ा है ये जान सकूँ ।  

ऐसे ही एक कार्यक्रम का मंच संचालन कर रहे भोला शंकर ने हमें पीछे की पंक्ति में बैठे हुए देखकर माईक पर चिल्लाया - आदरणीय महानुभावों , आज बड़े सुखद आश्चर्य का दिन है जो हमारे गुरूदेव अर्थात स्वयं प्राकट्य स्थितप्रज्ञ चीनी उँगली महाराज सशरीर इस अहाते में विराजमान है ।

भोला यहीं नहीं रूका और हमारे अंदाज में ही हमारी तारीफ करते हुए कहा – ये हमारा सौभाग्य है क्योंकि महाराज आबकारी अहाते को छोड़कर किसी और अहाते में बुलाये जाने पर भी नहीं जाते ।

ये वो अजीम शख्स हैं जिनका सानिध्य पाने के लिए इन्हे बुलाया नहीं जाता बल्कि उठाकर लाया जाता है । बुलाने पर ये वहीं जाते हैं जहाँ से इन्हे उठाकर घर पहुँचाने की पूरी व्यवस्था हो । 

खैर कार्यक्रम के पश्चात चेला भोला शंकर ने एक बौद्धिक दिखने के लिए भरी दुपहरी में कण्ठ लंगोट और पूरी बाँह के अस्तर वाला कोट पहने हुए स्त्री समानता के भय़ंकर पक्षधर श्रीमान श्याम कार्लोस विद्रोही से हमारी भेंट कराई । कहा महाराज ये श्याम कार्लोस विद्रोही जी है,  स्त्री अधिकारों के लिए आन्दोलन करते हैं ।

हमने कहा अच्छा, बहुत बढ़िया काम कर रहें हैं विद्रोही जी । 

विद्रोही जी हाथ जोड़कर बोले महाराज, कल इसी सभागार में स्त्री विमर्श पर गोष्ठी है, विषय है नारी अगर देवी है तो अबला क्यूँ ? 
आप जरूर आईयेगा । हम आपको ना तो उठाकर ला सकते हैं और ना ही उठाकर पहुँचाने की व्यवस्था कर पायेंगे लेकिन प्रेम से बुला रहें हैं , उम्मीद है आयेंगे जरूर । 

हमने उनका हाथ पकड़कर कहा विद्रोही जी,  प्रेम से हमें कोई भी बुलाए हम खींचे चले आते हैं । अच्छा , प्रेम से याद आया , भाभीजी नहीं दिख रहीं ? 

इतना सुनते ही भोला ने हमारा हाथ छुड़ाया और विद्रोही जी से दूर खींच कर कान में फुसफुसाया महाराज क्या बोल रहे हो । इनकी बीबी इनके स्त्री अधिकार आन्दोलन से इतना अधिक जागृत हो गईं कि अपने वाहन चालक के साथ नया संगठन बना कर इनकी आधी सम्पत्ति पर मालिकाना हक के लिए अदालत में अर्जी लगाईं है । 

खैर दूसरे दिन हम आदतन पिछली सीट पर बैठे थे और शायद क्या यकीनन भोला शंकर के कल के बोलने के स्टाईल से प्रभावित होकर विद्रोही जी मंच से कह रहे थे अब मैं जिस विदुषी महिला को अपने विचार व्यक्त करने बुला रहा हूँ , उनकी इतनी अधिक माँग है कि वे चाहकर भी हर जगह नहीं आ पातीं और उन्हे जबरिया उठाकर लाया जाता है ।  

कार्यक्रम कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण नियत दिशा में इससे आगे बढ़ नहीं पाया और चेला भोला शंकर हमें मंच की ओर इशारा कर बता रहा था कि जो महिला अपने डिजायनर सैण्डल से विद्रोही जी को भोग लगा रही थी, वो वही है जिसने अदालत में आधी सम्पत्ति के लिए अर्जी लगाया हुआ है और जो शख्स बीचबचाव के बहाने विद्रोही जी के दोनों हाथों को पीछे से जकड़ा हुआ था, वो उनका पुराना वाहन चालक । 

खैर जो भी हो स्त्री विमर्श पर इतना अच्छा लाईव कार्यक्रम मैने पहली बार देखा और सुना । 

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