रविवार, 3 नवंबर 2013

नरकरूप चौदस कथा

चेला भोला शंकर आज शाम को पिटकर आया ।
हमने पूछा अबे क्या हुआ बे ? ये तेरा चेहरा आज इतना साम्यवादी क्यूँ लग रहा है ?

भोला बोला क्या बताऊँ महाराज , कल आपने कहा था ना के नरक चौदस में जाकर पटाखा ले आना ।

हा त साले तुम क्या सीधे नरक चले गये थे या पटाखे की दुकान पर आग लग गई ?

नहीं महाराज, हम बाजार गये , देखा त डबल चेचीस टाईप की महरारू भी पटाखा लग रहीं थी । साले ये कमबख्त मेरे दो अनमोल आँख मुझसे बगावत कर दिये और बिल्कुल आशाराम के चरित्तर के जैसे किसी ना किसी महरारू की ओर अपनी दिशा कर रहे थे । हमारी गलती इतनी हुई के जब हम दुकानदार से ये पूछ रहे थे के ये अनार कितने की है ? ये फुलझड़ी कितने की है ? उस वक्त भी ये बगावत जारी रहा । साले कुछ मुस्टण्डे टाईप के समाजसेवियों ने मेरे आँखों के जेहनी बगावत का सारा पुण्यप्रताप मेरे पूरे चेहरे में उड़ेल दिया । मैंने पूछा हरी ॐ बोलना पड़ेगा तो सालों ने मेरे तशरीफ को भी इज्जत बख्श दी ।

अच्छा त साले ये बात है ?

लेकिन महाराज इ बताओ के दीपावली तो कल है । इ महरारू लोग आज काहे इतना डेंटिंग पेंटिंग करवाया है?

अबे आज रूप चौदस है ।

लेकिन आज त नरक चौदस है ।

अबे नरक चौदस त हमारे लिए है । मेहरारू लोगन के लिए आज रूप चौदस है ।

महाराज बात कुछ समझ नहीं आई । दीपावली का बख्शीस के रूप में आज यही ज्ञान समझा दो

त सुन बे ....  नरकरूप चौदस कथा

   एक समय की बात है, शांति लाल नामक एक पत्नीपीड़ित पति था। वह बहुत ही निरीह और दुखी पुरूष था। सदैव
 पत्नी के सेवा कार्यों में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उसे लेने के लिए आये। वे दूत शांति लाल को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। 

यमदूतों को देख कर शांति लाल आश्चर्य चकित हो गया और उसने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है । 

शांति लाल की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- " अबे शांति लाल एक बार तुम्हारे द्वार से चीनी उँगली महाराज ( याने के हम ) बिना दारू पिये प्यासा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

शांति लाल ने यमदूतों से उलाहना देते हुए कहा कि मैं पृथ्वी पर ही अपनी पत्नी से पीड़ित होकर नारकीय जीवन जी रहा हूँ मुझे नरक ले जाकर क्या फायदा? ले जाना है तो मेरी पत्नी को ले जाओ। वो अनअथराईज्ड रूप से स्वर्ग का आनन्द ले रही है। शांति लाल का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और हॉटलाईन पर यमराज से डेथ वारंट में नाम परिवर्तन हेतु अनुशंसा कर अनुमति माँगने लगे।

यमराज ने मामले की गंभीरता को देखते हुए चित्रगुप्त को आदेश दिया – चित्रगुप्त, तत्काल शांतिलाल के डेथवारंट वाली नोट शीट में उसकी पत्नी का प्रपोजल डालकर लाओ और बैकडेट में मुझसे एप्रुवल साईन करवाकर पृथ्वीलोक में फैक्स करो।

चित्रगुप्त भी मंत्रालय का वरिष्ठ एवं अनुभवी लेखाधिकारी था । उसने नोट शीट में लिखा – 

गत पृष्ठ के आगे.....
यमराज महोदय के मौखिक निर्देशानुसार शांतिलाल के स्थान पर उसकी पत्नी के आत्माहरण के प्रस्ताव प्रशासकीय स्वीकृति हेतु प्रस्तुत है, किन्तु महोदय के ध्यान में इस तथ्य को लाना आवश्यक है कि शांतिलाल की पत्नी ही नहीं, वरन उस जैसी सारी पत्नियाँ पृथ्वीलोक में अपने अपने पतियों के जीवन में नरकमय वातावरण बनाये रखने में पूरे मनोयोग से कार्यरत है। ऐसी सारी भद्र महिलायें यमलोक के नर्क विभाग के कर्मचारियों से भी अधिक कार्य-कुशलता से बिना वेतन कार्य कर रहीं हैं। वास्तव में इन्हे पृथ्वीलोक में नर्क विभाग से प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए। यदि ऐसी स्त्रियों का आत्माहरण कर यमलोक लाया जायेगा तो यमलोक की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ने के साथ साथ पृथ्वीलोक में यमलोक के यातनाओं के प्रचार-प्रसार पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही शांतिलाल जैसों के पत्नी पीड़ा से मुक्त हो जाने पर उन्हे पृथ्वीलोक में नारकीय जीवन नहीं मिलने के कारण उन्हे भी नर्क में शिफ्ट करना पड़ेगा जिससे नर्क लोक में एकोमेंडेशन की समस्या विकराल रूप लेकर भगदड़ की स्थिति निर्मित करेगी।  

इसलिए पृथ्वीलोक पर ही कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाय कि ऐसी सभी स्त्रियों को नर्क विभाग की प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी घोषित कर उन्हे बिना वेतन कार्य करने के बदले मानदेय स्वरूप उनके पति के खर्चे से स्वर्गिक आनन्द प्रदान हो सके और वे बिना किसी रूकावट के अपने पतियों को नर्कविधान अनुसार कष्ट प्रदान करती रहें ।

इस व्यवस्था की वार्षिक समीक्षा के लिए एक निश्चित तिथि भी निर्धारित किये जाने हेतु प्रस्तावित है जिसमें शांतिलाल जैसे पुरूष यमराज के नाम से भयाक्रांत होकर आप श्रीमान की पूजा अर्चना करें और उनकी पत्नियाँ के प्रतिनियुक्ति पर एक वर्ष पूर्ण होने पर वार्षिक आनंदोत्सव का आयोजन किया जाय । 

यदि महोदय सहमत हों तो महोदय के अवलोकनार्थ एवं अनुमोदनार्थ प्रस्तुत ....  सी.गुप्त , वरिष्ठ सचिव , लेखा विभाग

यमराज ने इस अद्भुत टीप से प्रभावित होकर अपना इरादा बदला और लिखा ... 

अनुमोदित , यथा प्रस्तावित ।
शांतिलाल के आत्माहरण आदेश निरस्त किया जाय और वार्षिक समीक्षा के लिए कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि निर्धारित की जाती है ।

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इस तरह प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि को शांतिलाल के प्राण बचने के कारण पुरूषों द्वारा इस दिवस को “नरक चौदस” एवं अपने पति को प्रताड़ित किये जाने के कर्तव्य को वैधानिक दर्जा दिये जाने पर स्त्रियों द्वारा आनंदोत्सव के रूप में इसे “रूप चौदस” के रूप में मनाया जाने लगा।   


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