शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

अन्ना का मौन व्रत और आंदोलन की दशा-दिशा

मौन का वास्तविक अर्थ है प्रतिक्रियाओं की शून्यता जिससे वाणी के साथ साथ चित्त भी शांत रहे लेकिन अन्ना द्वारा लगातार सारी राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखकर वाणी की बजाय कलम द्वारा अपनी त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान की जा रही है ! ये समझ से परे है इससे कौन सी उर्जा संरक्षित होगी और कौन सा संकल्प मजबूत होगा ! कभी कभी जो दिखाई देता है वास्तव में वो सही नहीं होता !  

मौन एवं ना बोलने में बुनियादी फर्क होता है ! यदि ना बोलकर लगातार अपने विचारों को लेखनी के द्वारा प्रगट करना यदि मौन व्रत है तो फेसबुक ट्विटर आदि अन्य सोशियल साईट्स पर कमोबेश सभी लोग मौन व्रत ही धारण किये हुए हैं लेकिन उर्जा का क्षय, क्रोध, प्रसन्नता, निंदा, प्रशंसा और अन्य लक्षण जो बोलकर एवं वाद प्रतिवाद से जो अनुभव किये जा सकते हैं सभी गुण विद्यमान है ! अगर इसे ही मौन व्रत कहा जाता तो फिर तो इस मार्डन हाईटेक मौन व्रत को नमन है! 

कुछ दिनों से यदि आप सूक्ष्मता से टीम अन्ना के कुछ अति निकट एवं मीडिया में प्रतिस्थापित सदस्यों के आचरण और बयानों को निष्पक्ष रूप से मनन करें तो एक खतरनाक एवं चिंताजनक स्थिति दिखाई देती है ! प्रशांत भूषण के बयान के बाद अन्ना ने कहा उन्हे टीम में रखने का निर्णय कोर कमेटी की सलाह मशविरा के बाद लिया जायेगा किंतु उसके ठीक बाद हिसार के चुनाव क्षेत्र से अरविंद केजरीवाल दावे के साथ कहते हैं कि प्रशांत टीम में बने रहेंगे ! तो इधर अन्ना यहाँ अपनी स्थिति स्पष्ट करते हैं कि कश्मीर किसी भी स्थिति में भारत का अभिन्न हिस्सा है इस पर कोई दो राय नहीं है और अन्ना अचानक अनिश्चितकालीन मौनव्रत पर जाने की घोषणा कर देते हैं किंतु इस मौन व्रत पर जाने से पूर्व उन्होने एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी कि यदि शीतकालीन सत्र में यदि लोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वे लोगों से काँग्रेस को वोट ना देने की अपील करेंगे ! किंतु अरविंद केजरीवाल हिसार उपचुनाव के नतीजों से अति उत्साहित होकर यूपी  में कूद गये और तत्काल काँग्रेस को वोट ना देने की अपील कर दी ! अभी तो शीतकालीन सत्र प्रारंभ भी नहीं हुआ है और यू पी के आम चुनाव भी दूर हैं फिर ये हड़बड़ी क्यूँ ? क्या ये अरविंद केजरीवाल की अतिमहत्वाकांक्षा नहीं है ? अब जब उनके उपर जूतमपैजार हुई तो अन्ना का मौन रहते हुए बयान आया कि वे मौन व्रत के बाद लखनऊ जायेंगे क्यूँ ????? डेमेज कंट्रोल करने ....  क्या अब अन्ना का यही काम बच गया है कि उनके सिपाहसालार और स्वयंभू देशभक्त उल्टियाँ करते रहें और ये उन्हे साफ करते जायें !  

ऐसी बातों से अन्ना के अंद्धभक्त मुझे भ्रष्टाचारी की संज्ञा भी दे सकते हैं क्योंकि पूर्व में कमोबेश ये नारा लगाया जा रहा था कि जो टीम अन्ना से सहमत नहीं वो भ्रष्टाचार के साथ है किंतु अरविंद केजरीवाल के यू पी में टीम अन्ना के कांग्रेस हराओ अभियान पर टीम अन्ना यानी आंदोलन की 22 सदस्यीय कोर कमेटी के दो महत्वपूर्ण सदस्यों, वी. पी. राजगोपाल और पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद सिंह के इस्तीफे से क्या साबित होता है !  जस्टिस संतोष हेगड़े भी इस निर्णय से अपनी असहमति सार्वजनिक रूप से प्रकट कर चुके हैं! आई ए सी के कार्यकर्ताओं का फंड के हिसाब किताब पर असंतोष जाहिर कर धरना देना और अब किरण बेदी का हवाई यात्रा काण्ड अन्ना के आंदोलन की मूल भावना पर तो नहीं किंतु टीम की विश्वसनीयता पर जरूर प्रश्न चिन्ह लगाता है !

टीम अन्ना के मुख्य सतारूढ़ दल होने के कारण काँग्रेस विरोधी अभियान में मुख्य रूप से दो परस्पर विरोधाभाषी बयान सामने आये हैं! वे कहते हैं यदि काँग्रेस शीतकालीन सत्र में सशक्त लोकपाल बिल पास कर देती है तो वे काँग्रेस का चुनावों में समर्थन करेंगे और इसके उलट यदि ऐसा नहीं हुआ तो वे वही करेंगे जो उन्होने हिसार उपचुनाव में किया है मतलब किसी को भी वोट दें पर काँग्रेस को नहीं ! 

सरसरी निगाह से यदि इसे देखा जाय तो यह अत्यंत प्रभावशाली और उचित बयान प्रतीत होता है किंतु जरा परिस्थितियों पर गहन चिंतन करें तो एक अलग ही तथ्य सामने आता है! क्या काँग्रेस पार्टी की संसद के दोनो सदनो में स्वयं का सदस्य संख्याबल इतना है कि वो स्वयं के दम पर ये बिल पास करा ले ......  निश्चित तौर पर नहीं ! तो फिर लोकपाल के कानून नहीं बनाने पर केवल काँग्रेस को ही हराने की बात क्यों ? दूसरी स्थिति में यदि जनलोकपाल कानून बन जाता है तो यकीनन इसे ससंद में पास करने में अन्य पार्टीयों का भी सहयोग सम्मिलित होगा जो काँग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं! तो ऐसी स्थिति में टीम अन्ना का काँग्रेस के उम्मीदवार का समर्थन कमोबेश उन पार्टीयों के खिलाफ ही माना जायेगा तो क्या टीम अन्ना का ये रवैय्या उन विपक्षी पार्टियों के प्रति सही होगा जिन्होने जनलोकपाल का संसद में समर्थन किया ?

अन्ना का आंदोलन अपने गैर राजनीतिक स्वरूप और विभिन्न मतावलम्बी संगठनों से आए ईमानदार जमीनी कार्यकर्ताओं और आम जनता का स्वफूर्त जुड़ाव इसकी सबसे बड़ी शक्ति रही है। अन्ना टीम के कुछ अति निकट सहयोगी अगर इस दिशा पर कार्य कर रहें  हैं कि काँग्रेस पर हमला बोलकर उन्हे घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देना ही उनकी रणनीति है तो यह भारी भूल है।  

ऐसी रणनीति से कोई सरकार तो बदल सकती है लेकिन बुनियादी रूप से कोई सामाजिक जन चेतना या आधारभूत बदलाव नहीं आयेगा ! इस संदर्भ में हमें जयप्रकाश नारायण और विश्वनाथ प्रताप सिंह के आंदोलनों के परिणामों को याद करना चाहिए !  

अन्ना के आंदोलन का ऐजेंडा आज की परिस्थिति में जय प्रकाश नारायण के जन आंदोलन से कहीं अधिक गहरा और व्यापक हो सकता है किंतु प्रबंधन कौशल एवं राजनितिक परिपक्वता के मामले में वे जयप्रकाश के आंदोलन से काफी बौने हैं या ये कहें कि कोई अस्तित्व ही नहीं है ! लेकिन जयप्रकाश के आंदोलन से भी कुछ भी मूलभूत परिवर्तन नहीं हुआ हाँ कुछ उनके चारण भाट टाईप के लोग नेता बनकर मुफ्त की रोटी तोड़ रहे हैं और आज तक उनके नाम से अपनी नेतागिरी चमका रहे हैं!

जन लोकपाल आंदोलन अब एक ऐसे दोराहे पर है जहां उसके भटकने की पूर्ण सम्भावना है ! अन्ना को चाहिए कि इसकी दशा और दिशा पर इस मौन व्रत के दौरान अपनी त्वरित प्रतिक्रियाओं को तत्काल बंदकर शांत एवं गंभीरता से चिंतन करें और पूर्व में हुई जयप्रकाश के महान आंदोलन के हश्र से सबक लेकर भ्रष्टाचार के विरोध में जनचेतना हेतु एक लम्बी एवं सार्थकता से परिपूर्ण दिशायुक्त रणनीति बनाये जिसमें सहज राजनीतिक आकर्षण के बजाय लोकतांत्रिक परम्पराओं के लिए सम्मान के साथ-साथ  धरातल पर कोई ठोस परिवर्तन की सम्भावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो !! जय हो !!

3 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत प्रस्तुति |

    त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो खुब दीप जलें |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    दीप जलाने चले चलें ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  2. आपसे सहमत।
    मौन व्रत के जो फायदे हैं उससे तो अन्‍ना वंचित ही रह जाएंगे....

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