बुधवार, 25 जुलाई 2012

महामहिम का घोड़ा








प्रतिभाताई ने आखिरकार अपनी कुर्सी प्रणब दा को दे दी और प्रणब बाबू जो कभी अगले जनम में महामहिम का घोड़ा बनना चाहते थे इस जनम में ही स्वयं महामहिम हो कर ऐसे कई घोड़ों के मालिक हो गये ।



प्रणव दा आप राष्ट्रपति का घोड़ा इसलिए बनना चाहते थे ना  क्योंकि उसे कुछ काम नहीं करना पड़ता लेकिन आपने कभी इन घोड़ों की  मजबूरी पर गौर किया कि उन्हे गधों को अपनी पीठ पर बिठाकर सवारी करानी पड़ती है ।



लेकिन प्रणब दा आप इस जनम में ही पूरे जीवन भर घोड़ा ही बने रहे कभी घुड़सवार नहीं बन सके और राष्ट्रपति के घोड़ों की तरह ही पवित्र परिवार के घुड़साल बंधे रहे । पवित्र परिवार ने आपकी घुड़सवारी का पूरा आनंद और लाभ उठाया और जब-जब उन्हे अपनी साख बचाने की जरूरत हूई, आपकी पीठ पर काठी कस दी लेकिन आपको उन्होने कभी घुड़सवार नहीं बनाया । आपकी ये अंदरूनी टीस 1984 में फूट भी पड़ी थी ।



घोड़े का घुड़सवार ना बन पाना उतनी टीस नहीं देती जितना यदि उसका मालिक उसकी पीठ पर गधे को बिठा कर सवारी करा दे । इस तकलीफ को कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है । 28 वर्षों से अपनी पीठ पर गधों को ढोते ढोते आपकी अंतरात्मा कितनी तकलीफ झेली होगी यह मैं समझ सकता हूँ ।



आपकी ये असह्य मानसिक पीड़ा बिल्कुल जायज भी है ।  आपके मानसिक वेदना की हद तो तब हो गई जब अपने अधीनस्थ कार्य करने वाला गधा आपका घुड़सवार हो गया और आप उसे पिछले 7 वर्षों से पवित्र परिवार की खुशी के लिए ढोये जा रहे हैं । जाने कैसे सही आपने इतनी पीड़ा .... 

खैर कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं । इस बात का शुक्र मनाईये कि अगर 2014 राज्योत्सव में डी कम्पनी बाई डिफाल्ट पुन: कुर्सी पा जाती तो आपको गधे की जगह शूकर को ढोना पड़ता और श्वान के निर्देशन के कार्य करना पड़ता । कम से कम इस जलालत से तो आप बच गये ।



आप अब घुड़सवार बन गये हैं । देश की सर्वोच्च पद पर आसीन होने पर मैं आपका पूरी देश की जनता की ओर से हार्दिक बधाई देता हूँ , अभिनंदन करता हूँ और आपसे अपेक्षा करता हूँ कि देश की बागडोर सम्भाले राजनीतिक जीवन के अंतिम पायदान में आप भ्रमण, सैर सपाटे और शापिंग से इतर राष्ट्रहित में लीक से हटकर कुछ ऐसे कदम उठायें जिनका दूरगामी परिणाम हो और यह कृतज्ञ देश सदैव आभारी रह आपका स्मरण करता रहे ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया बंधू ।

    बधाई ।।

    यह घोडा बंदूक का, करे आर या पार ।

    लेकिन ढाई घर चला, घर के लिए सवार ।

    घर के लिए सवार, मौन मन कर बेगारी।

    ढोया सारा भार, रहा बनकर व्यवहारी ।

    रविकर जैसे गधे, सधे बन बड़े खिलाड़ी ।

    पांच साल घुड़साल, ताकिये बैठ अगाड़ी ।।

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