शनिवार, 20 अगस्त 2011

जनमत और लोकपाल

पिछले पाँच दिनों से देश के वरिष्ठ माने जाने वाले पत्रकारों एवं बुध्दजीवीयों के विचारों, वक्तव्यों एवं अनुमानो को बड़ी गँभीरता से तटस्थ भाव से देख एवं सुन रहा हूँ ! सभी ने कमोबेश एक ही गाना गाया बस राग अलग अलग थे ! सरकार की छवि खराब हुई है ! सरकार दबाव में है ! सरकार की फजीहत हो गई !  अन्ना के सामने झुकी सरकार ! सरकार की लोकप्रियता घटी ! कुछ भविष्यवक्ता टाईप के बुध्दजीवी लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाले विधानसभा चुनावों में काँग्रेस को भारी नुकसान होगा ! भाजपा एवं अन्य विपक्षी दल भी इस गाने को सुनकर ऐसे नाच रहें है जैसे कभी मुन्नी और शीला भी नहीं नाची थीं ! सभी को मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह के जैसे लोगों के बयानों में ओछापन एवं बौखलाहट नजर आ रहा है लेकिन मेरे नजर में ये उनका आत्मविश्वास है और ये आत्मविश्वास शत प्रतिशत सही भी है ! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि अभी चुनाव हो जाये तो फिर से काँग्रेसनीत सरकार ही बनेगी ! ये कोई हवा हवाई बातें नहीं है इसके पीछे कई ठोस तथ्यपूर्ण कारण है ! उल्टेक्रम में सबसे पहला कारण यह है कि विपक्ष केवल कागज पर है और उसके सारे नीति निर्धारक नेताओं का कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है ! वे इस उम्मीद में हैं कि लोग काँग्रेस को नकारे और बाई डिफाल्ट उन्हे शासन करने का मौका मिले इसलिए वे आक्रमक नहीं होकर वेट एण्ड वॉच की नीति धारण किये हुए हैं ! दूसरा महत्वपूर्ण कारण काँग्रेस के आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिस देश की 80% जनता आज भी गाँवों में रहती है जहाँ मीडिया तो छोड़िये बिजली, पानी की भी मूलभूत सुविधा नहीं है वहाँ कितने लोग लोकपाल , अन्ना , कलमाड़ी को जानते हैं और कहीं सुन भी लिया हो तो किसे इससे मतलब है ! चुनाव परिणामों को देखें तो काँग्रेस वैसे भी कभी शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है ! जहाँ इस आंदोलन का ज्यादा प्रभाव है ! इस देश में जहाँ सरकार बनाने के  लिए 20% से 30% वोट पाना ही पर्याप्त है और यह आंदोलन का प्रभाव आज भी कम से कम 60% से 70% वोटरों से अछूता है ! सरकार की लप्फेबाजी सिर्फ नौटंकी है मामले को लम्बा खीचने को ! इस देश में चुनाव के खेल कैसे जीते जाते हैं ये कमोबेश सारे दर्शकों को पता है तो इन माहिर खिलाड़ियों को नहीं पता हो ऐसा कहना सबसे बड़ी मूर्खता होगी !  काँग्रेस के ये बयानबाज इतने मूर्ख नहीं है जितना लोग समझ रहे हैं वे अच्छे से जानते हैं कि चाहे कितनी बड़ी भी आंदोलन खड़ी कर लो अन्ना और उसकी टीम चुनाव लड़्ने से तो रही और यदि लड़ भी ले तो जीतेगें नहीं इसे तो स्वयं अन्ना भी स्वीकार कर चुके हैं ! कुल मिलाकर इन्ही भाजपा और अन्य चिरपरिचित प्रतिद्वंदियों से नूरा कुश्ती होगी ! इन आंदोलनो से अगर थोड़ी बहुत इंकम्बेंसी होती भी है तो फिर राष्ट्रपिता के चित्रवाला रंगीन कागज, सुरा सुंदरी तथा आग्नेय अश्त्रधारी स्वयंसेवक हैं ही ! इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से लोकपाल से ज्यादा चुनाव सुधार का पक्षधर रहा हूँ लेकिन देश के पंजीकृत बुध्दजीवी और रहनुमा मुझ जैसे एक अदने से आदमी की बात माने इतने बेगैरत और मूर्ख तो हैं नहीं आखिर हैसियत और सामाजिक प्रतिष्ठा भी कोई चीज होती है !! जय हो !!

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