शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मैकाली शिक्षा और अंधी दौड़

आधुनिक मैकाले शिक्षा पद्यति से लबरेज कान्वेन्ट मिशनरी स्कूल ..........
जिसमें व्यवहारिक शिक्षा से ज्यादा किताबी ज्ञान और आडम्बर पर जोर......  दिसम्बर की ठिठुरन भरी सुबह में
सूरज चाचा के जागने से पहले तैयार होकर किसी बैंण्ड पार्टी की वेषभूषा में अपनी माताओं के साथ सड़क किनारे खुद से डेढ़ गुना ज्यादा वजनी बस्ते के बोझ को उठाये स्कूल बस का इंतजार करते हुए अपने हाथों को रगड़ कर किसी तरह ठण्डी को भगाने के असफल प्रयास में काँपते हुए नौनिहाल मानो किसी रणक्षेत्र में जाने को तैयार खड़े हों !

ये नजारा अचानक मेरी आँखो के सामने आया जब मैं अपनी नैसर्गिक दिनचर्या के विपरीत आज सुबह सुबह घर से बाहर टहलने निकला ...  अरे चौंकिए मत !  मैं किसी बाबा के किरपा के चक्कर में अपनी आदत बदलकर सुबह उठा नहीं बल्कि रात भर काम निपटाते निपटाते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला ....   काम समाप्त कर जैसे ही घड़ीबाबू पर नजरें टिकाई देखा तो अपने दोनो काँटो के द्वारा सूर्य नमस्कार कर रहे हैं यानी सुबह के पूरे छ: बजा रहे थे ! सूरजचाचा रोज शिकायत करते हैं कि मैं उन्हे कभी वेलकम नहीं करता तो सोचा चलो आज उन्हे गुडमार्निंग बोलकर उनकी वर्षों की शिकायत दूर कर दूँ ! सो निकल पड़ा खुले आसमान में चाचा की अगुवानी के लिए सड़क की ओर ...  सूरजाचाचा तो ठण्डी की वजह से कोहरे के कम्बल ओढ़कर सरकारी बाबू की तरह लेट आने का मूड बनाये हुए थे लेकिन ये नजारा मेरी आँखो के सामने आ गया !

किताबी कचरे को कण्ठस्थ किये देश की अगली पीढ़ी केवल इस सिध्दांत पर आगे बढ़ रही है कि किसी तरह स्मरणशक्ति बढ़ाकर परीक्षा में शत प्रतिशत अंक अर्जित किया जाय और फिर एक अदद तन्ख्वाह वाली नौकरी पाकर भौतिक संतुष्टि प्राप्त किया जाय यही जीवन का लक्ष्य है ! क्या पढ़ा क्यों पढ़ा .. इनका असली भावार्थ क्या है ये किसी को पता नही ..  स्वयं शिक्षक को पता नहीं तो बच्चों को क्या समझायेगा वो तो खुद ही अपनी तन्ख्वाह बढ़ाने के लिए आधे वर्ष आंदोलनरत रहता है !

खैर जाने दें व्यर्थ की पीढ़ा लेकर बैठ गया लेखक मन अनावश्यक ही श्याम बेनेगल की तरह व्यवसायिक फिल्मों से फिसलकर कलात्मक फिल्मों की ओर भटक जाता है इससे किसी पाठक को कोई दिलचस्पी भी नहीं होगी ना तो कोई लाईक्स ना तारीफ में कोई कामेंट्स ऐसे में लिखने का फायदा क्या? सो मूल कमर्शियल मसालेदार मुद्दे पर आता हूँ !

इसी कान्वेन्ट की परम्परा में पल रहे एक पड़ोसी के 13 वर्षीय बालक ने मेरे घर की कालबेल बजाई ! दरवाजा खोला तो मुझसे बड़े रोबीले ढंग से कहा “ गुड इवनिंग सर” और अपना हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया ! मैंने भी थोड़ा झिझक कर लेकिन अपने आप को उस बच्चे के सामने गँवार न दिखाई दूँ इस भय से उसकी तरह मार्डन बनने की कोशिश करता हुआ हाथ मिला कर कहा .. “ गुड इवनिंग डूड प्लीज कम एंड सीट” !  मैंने उससे पूछा कैसे आना हुआ तो उसने कहा – एक्च्यूली सर .. माइ ब्राड बैंड कनेक्शन इज कट ड्यू टू माई फादर्स नेग्लीजेंसी ! उन्होने ड्यू डेट में एमाउंट डिपोजिट नहीं किया सो आई कान्ट एबल टू एक्सेस इंटरनेट ! डू यू परमिट मी टू एक्सेस योर इंटरनेट ..  आई हैव सबमिट ए प्रोजेक्ट रिपोर्ट ऑन अन्ना हजारे सो नीड कापी सम आर्टिकल ऑन हजारे ! आई विल मेक ए रिपोर्ट बाई सलेक्ट गुड लाईन्स एंड रिअरेंज देम !

मैंने कहा “व्हाट एन आईडिया डूड....  गो एहेड “ किंतु इस भौतिकवादी दुनिया मे उत्पन्न एक ज्वलंत समस्या “ पर्यावरण प्रदूषण “ पर उसके दृष्टिकोण को जानने की प्रबल इच्छा ने मुझे उकसाया और मैंने उससे पूछ लिया  भगवान शंकर की जटाओं से निकली गँगा आज इतनी प्रदुषित हो गई है उसके बारे में तुम क्या सोचते हो ? उसने तपाक से कहा ..  सर जस्ट लास्ट नाईट आई रोट इन एक्लूसिव स्टोरी ऑन दिस मेटर एण्ड आई पोस्टेड इट ऑन माई सोशियल नेटवर्किंग साईट फेसबुक स्टेट्स ... विच गेट लार्ज एमाऊण्ट ऑफ लाईक्स एण्ड कामेंट्स ...  यू केन आल्सो रीड दिस ऑन माई स्टेट्स...  मैंने उसके जाने के बाद कौतुहलवश उसके स्टेटस को चेक किया तो स्टोरी कुछ इस तरह लिखी मिली .....  
लार्ड विष्णुस ऑफिसयल वाईफ गॉडेश ऑफ वेल्थ मिसेस लक्मी अपडेटिंग हर स्विस एकाऊंट ऑस्क लार्ड विष्णु ओ माई डियर वाटर सरफेश स्नेकबेड रेस्टेड मेन,  व्हाय यू नाट एडवाईस यूअर क्लोज फ्रेंड शंकरा टू वॉस हिस हेयर विथ एनी मल्टीनेशनल ब्रांडेड शेम्पू ... लेडी रिवर गंगा इज सो डर्टी... आई कुडंट टेक बाथ ऑन इलाहाबाद कांफ्लूयेंस ... आई हर्ड मिस गंगा इज ओरिजनेटेड फ्राम दि हेयर वेल ऑफ शंकरा ... यू मस्ट टेल मिस्टर रजनीकांता टू डू सम थिंग एबाऊट दिस ! ही केन साल्व दिस प्राब्लम विथिन वन मिनिट ..... इफ यू कान्ट हेंडल दिस देन टेल मी  ...  माई सन गणेशा विल टेक केयर ऑफ आल दी मेटर विथ हिस कुलीग डोरेमान एंड नोविता !



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5 टिप्‍पणियां:

  1. अजब गजब :) :) मजा आ गया :) :) पूर्ण आंग्ल भाषा के स्थान पर आंगल भाषा के अशुद्ध हिंदी को मिश्रित कर दें और नदियो के संगम को कान्फ़्लुएन्स कहा जाता है

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  2. सुंदर चित्रण बढ़िया आलेख,.....अच्छी प्रस्तुति ...

    मेरी नई रचना...काव्यान्जलि ...बेटी और पेड़... में click करे

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.घटना का सुन्दर और रोचक वर्णन .

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