गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

जन आंदोलनो की कमियाँ


अन्ना हारे नहीं ...

उन्हे हारना भी नही चाहिए ...



बाबा भागे नहीं ..

उन्हे भागना भी नहीं चाहिए



ये पंक्तियाँ आपको भ्रमित कर सकती हैं लेकिन इन दोनो आंदोलनों की परिणति तो एक है पर कारण अलग अलग है



बाबा को योग से मिली प्रसिध्दि ने ऐसा भ्रमित किया की वे स्वयं को मठाधीश मानने लग गये उन्होने अपने राजनितिक आंदोलन को योग शिविर की तरह चलाना चाहा और सहयोगी भी रखा तो किसे बालकृष्ण को जिसे जड़ीबूटी के सिवा कुछ आता नहीं ! राजनीतिक आँदोलन में विरोधी कई हथकण्डे अपनाते है उनको समझना और उसका तोड़ निकालना इन दोनो को आता नहीं या यों कहें इन्हे उसका कखग भी पता नहीं इसलिए पहले ही अनशन पर चक्रव्ह्यू में फँसकर अभिमन्यु सा हाल बनाया !  उन्हे इन तिकड़मी चालो को समझने और उसका उपाय ढूँढने वाली रणनीतिकार टीम की सख्त आवश्यकता है !



दूसरी ओर अन्ना के पास ऐसे हथकण्डों को समझने वाली पूरी फौज है और उनकी टीम की रणनीति तो ठीक थी लेकिन अहंकार खा गया ! रातों रात मिले जनसमर्थन को अपनी निजी जागीर समझ बौराई टीम अन्ना अहंकार के मद में ऐसी चूर हुई कि अपने ही बुने जाल में फँस कर रह गई अब फड़फ़ड़ा रही है ! कमोबेश सभी पार्टीयों ने भी दृश्य अदृष्य ऐसी चक्रव्यूह की रचना कर दी है कि अब अन्ना को उनके ही समर्थन की आवश्यकता पड़ने लगी है जिन्हे उनके कौरवी सेना सुबह शाम कोसती रहती थी और पुत्र मोह में ग्रसित धृतराष्ट्र की तरह अन्ना भी उनके सुर में सुर मिलाते रहे ........



लेकिन खेल अभी समाप्त नहीं हुआ है अगर दोनो चाहे तो अलग अलग ही सही पर एक दूसरे का विरोध ना कर अपनी अपनी गलतियों से सबक ले और आगे बढ़े तो मंजिल दुष्कर जरूर है लेकिन ऐसा नहीं कि उसे हासिल ना किया जा सके !

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