मंगलवार, 14 अगस्त 2012

जश्न-ए-आजादी तुम्हे मुबारक


मुझको मालूम है आज रात फिर आजादी मेरे सपने में आयेगी और उससे कई तीखे सवाल करूँगा तो चिढ़कर चली जायेगी और फिर अगले वर्ष ही आयेगी । मैं उस पर बरसों से वही सवालों के बौछार करता हूँ और वो इससे भली भाँति परिचित भी है लेकिन जब से होश सम्भाला है हर चौदह अगस्त की रात वो आती है और मेरे इन्ही तमाम सवालों को सुनकर चली जाती है । आप भी इस देश के आजाद नागरिक हैं और वही दंश वही दर्प वही सुख वही आनंद भोग रहे हैं तो सोचा क्यूँ ना आपको भी मैं ये सवाल दाग दूँ।  आखिर आजादी ना सही कोई तो मेरे इस सवालों का जवाब दे  ... 


आखिर ऐसा क्या कारण था कि देश का विभाजन करना पड़ा और जब एक विशेष सम्प्रदाय के लिये अपनी ही धरती के टुकड़े कर दिये तो बाकी बचे टुकड़े में उसी सम्प्रदाय के लोगों का पहला हक क्यूँ है ?  

मैने कभी नहीं चाहा कि मुझे पहला दर्जा मिले पर मैं जानना चाहता हूँ मेरा कसूर क्या है कि मुझे दूसरा दर्जा दिया जाता है ? 

मैं जानना चाहता हूँ कि यदि देश को आजादी केवल गाँधी ने ही दिलाई है और उसके अनुयायी ही सच्चे देशभक्त हैं तो सुभाष, भगत, आजाद, तिलक, बिपिन, लाजपत और अनेको लोग जो अपनी प्राणों आहूति दिये वे क्या हैं ? क्या आज की पीढ़ी उन्हे उतना ही जानती है और सम्मान देती है जितना गाँधी को ?   

जो लोग आज आजादी का जश्न मनाकर बधाईयाँ दे रहे हैं, मुझे मालूम है उनमें से अधिकांश कल सारा दिन सपरिवार किसी मॉल में इंज्वाय करेंगे या किसी पर्यटन स्थल पर पिकनिक मनायेंगे । अगर आजादी का यही मतलब है तो फिर हर रविवार को आजादी का जश्न मनाया जा सकता है ।  


लाऊड स्पीकरों पर “जरा याद उन्हे भी कर लो” का निवेदन करती हुई लता ताई के गीत बजा कर तिरंगा लहराना ही देशभक्ति है ? 

देश अब भी जंजीरो से जकड़ा हुआ है- संकीर्ण विचारों से, सामाजिक विषमता से, आर्थिक विपन्नता से, कट्टरपंथी विचारधारा से, तुष्टिकरण की नीति से, तथाकथित बुध्दजीवियों की कुटिल वाकजाल से, धृतराष्ट रहनुमाओं से ।

 असली आजादी तो तभी मिलेगी जब इन बेड़ियों से मुक्ति पायें ।  

मेरी इन बातों से सहमति हो तो जरा गौर फरमायें अन्यथा आजादी का जश्न किसी शापिंग मॉल में “जिस्म 2” या “गैंग ऑफ वासेपुर”  देखकर पिज्जा और पेप्सी के साथ मनायें । आपका कौन क्या बिगाड़ लेगा आखिर आप "आजाद" हैं ...

चाहे जितनी भी पीड़ा हो, कटुता हो पर “ट्रांसफर ऑफ पॉवर डे” पर जश्न मनाने के बजाय मैं उन गुमनाम अमर शहीदों को बारम्बार नमन, वंदन, अभिनंदन कर अपनी आँखे नम करना चाहूँगा जिन्होने हँसते हँसते अपने प्राण मातृभूमि पर न्यौछावर कर दिया ....  जय हो ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. mujhe aap apne karibi mansik rishtedar lagte hain---pranam karta hun--

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  2. Bhai Arvind yah vyatha har thode se bhi samvedansheel Bharteey ke bheetar hai pr yahan ab koi bhi apne bachhe ko Bhagat singh nahi banana chahta babu bana kar hi khus ho leta hai, vastav me hum apni samvednavo ko maar kar 15 august aur 26 Jan mana kar khus ho lete hain.

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