सोमवार, 9 जनवरी 2012

मैं तुलसी तेरे आँगन की - कुशवाहा का कमलासन

कमल हवेली में आई पुरानी ऐलीफेंटा मॉडल की एक नई दुलहन कुशवाही देवी का ह्रदयनाथ सिंह और खटियार बाबू ने खुश होने के साथ वाह वाह कर स्वागत किया गया और कहा गया बहू पिछवाड़े में बिखरे पड़े अनाजों का संग्रह कर परिवार को सम्पन्न करेगी किंतु उसके गृह परवेश करते ही उस पर लगे काले चाल चरित्र के धब्बों के कारण परिवार के मर्यादा पर लांक्षन लगने लगी ! सारे विरोधी पड़ोसी मौका पाते ही थू थू करने लगे ! यहाँ तक की बिहार के दामाद बाबू भी लानत मलामत करने लगे ! हद तो तब हो गई जब घर के ही सदस्य इस पर उँगली उठाने लगे ! अविवाहित बेटी भारती दीदी ने नाराज होकर चुनावी उत्सव में मौन धारण कर लिया ! युवा बेटा आदित्य घर छोड़ कर योगी बनने धमकी देने लगा और उसकी बातों का खिलाड़ी बेटा आजाद होकर समर्थन करने लगा ! यहाँ तक की पशु पक्षियों से प्रेम करने वाली घर की एक बहु रम्भा ने भी आपत्ति उठाई !


खबर तो ये भी उड़ी थी कि घर के पितामह कृष्ण और परिवार का सामाजिक प्रतिनिधित्व  करने वाले केतली चाचा और बड़ी बहू उष्मा गेराज भी इस रिश्ते से खुश नहीं थे ! पूरे गली मोहल्ले में थू थू होने लगी ! ईर्ष्यालु पड़ोसी तो इसी मौके की तलाश में थे ! मौका देख मोहल्ले के बड़ी हवेली के दुलारे बेटे बबलू ने भी चौक में खड़े होकर ये कहकर फिकरे कसना चालू कर दिया कि ये कुशवाही तो पहले हमारे हवेली के ख्वाब देख रही थी मैंने घास नहीं डाली तो पैसे से अपने को बेचकर कमल हवेली में गई है ! बात मोहल्ले से निकल कर पूरे गाँव में फैलने लगी ! इतने में परिवार के संतरापुर आश्रम के कुल गुरू के द्वारा संदेश भिजवाया गया जैसे भी हो इस बदनामी के दाग को धोया जाय या कम से कम छुपाया जाय इससे परिवार की मान मर्यादा के साथ साथ आश्रम द्वारा दिये जा रहे संस्कारों पर भी उँगली उठनी चालू हो गई है !
 
अब क्या था चाहे कुछ भी हो जाये परिवार आश्रम के द्वारा ही संस्कारित था अत: कुल गुरू के निर्देशों की अवहेलना तो सपने में भी नहीं कर सकता था !  आनन फानन में घर के बुध्दिमान लोगों के बीच मंत्रणा कर इस कष्ट से निवारण का उपाय ढूँढा जाने लगा ! गहन विचार विमर्श के बाद एक जबरदस्त आईडिया निकाला गया !
 

परिवार के मनोनीत मुखिया गुणकारी बाबू को सम्बोधित कर नई बहु कुशवाही के कोमल हाथों से चिठ्ठी लिखवाई गई  !

आदरणीय गुणकारी बाबूजी
,
 
मेरी अंतरात्मा जानती है कि मैं तन से कितनी भी मलीन क्यूँ ना रहूँ पर मन मेरा शुध्द और पवित्र है ! मुझ पर लगाये गये आरोप जब तक साबित नहीं हो जाते तब तक न्याय के मान्य सिध्दांत के अनुसार मैं निर्दोष ही हूँ ! चूँकि सत्ता संग्राम की इस कठिन घड़ी में मेरे कारण पूरे परिवार को अपमान का दंश झेलना पड़ रहा  है अत: स्वेच्छा से मैं अनिश्चितकाल के लिए अपनी नव गृहस्थी का परित्याग करती हूँ  और घोषणा करती हूँ कि सत्ता संग्राम की समाप्ति उपरांत जब तक अग्निपरीक्षा में स्वयं को निर्दोष सिध्द न कर दूँ परिवार में सम्मिलित नहीं हुँगी ! आपसे अनुरोध है कि मेरे इस परित्याग को स्वीकार कर पारिवारिक सूची से निलम्बित करने की कृपा करें ! मुझे पूर्ण विश्वास है सत्ता संग्राम में विजयी होने के उपरांत फायरप्रुफ जेकेट की सहायता से अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण कर सकुशल बाहर निकाला जायेगा तथा निष्कलंक होने का सम्मान प्रदान किया जायेगा !  आशा है मेरे इस कृत्य को कुल के मान सम्मान के रक्षार्थ किये गये त्याग से महिमा मण्डित किया जाकर उचित मान सम्मान प्रदान किया जायेगा !

बस फिर क्या था गुणकारी बाबूजी ने नववधू का कोमल भावना से ओतप्रोत त्याग पत्र स्वीकार किया और घोषणा की “ हमारी बहू पवित्र और निष्कलंक है और साथ साथ संस्कारवान भी ! उसने अपने निजी सुखों का बलिदान कर परिवार के मान सम्मान के लिए गृहस्थ जीवन का सहर्ष परित्याग किया है ! मुझे पूरा विश्वास है कि अग्निपरीक्षा में किसी भी तरह से वो सफल होकर अपनी निर्दोषता एवं पवित्रता सिध्द करेगी ! हमारा परिवार सदैव संस्कारी, कुलीन और सभ्रांत रहा है और आज एक बार फिर से सिध्द हुआ है !

लेकिन अब बाजी उल्टी हो गई थी ! पड़ौसी नव बधू के घर से निलम्बित होने से खुश होने की बजाय मातम मना रहे थे ! इस बीच उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसकती दिखाई दी जब कमल हवेली के लोगों ने बड़ी हवेली पर ये कहकर ताने मारने लगे कि हमारी बहु तो गृहस्थी प्रारंभ करने से पहले ही स्वेच्छा से त्याग कर कुलीन होने का प्रमाण दिया है लेकिन तुम्हारी हवेली का क्या तुम्हारी बहुयें तो हवेली के बालकनी से राहगीरों से नैन मिलाती हैं और उन्हे तो आप बाहर भी नहीं निकाल सकते क्योंकि आपके कई नौनिहालों की माँ भी बन चुकी हैं ! ये अब जायेंगी तो अपने ससुराल से सीधे तिहाड़ गाँव के मायके में ही ! 

अब सायकल वाला छैला बाबू, देशी ठेके में बीड़ी सुलगा लोगों से गलबहियाँ कर रहा है ! बहनजी अपनी ही मुर्ति को बुर्का पहनाये जाने के खबर से दुखी है ! बड़ी हवेली के को क्या पकवान बनाये ये सूझ नहीं रहा पर लाड़ला बबलू अब भी हाथियों को हेलीकाफ्टर समझकर गाँव की कच्ची पगडंडीयों पर कंचे खेलने में मशगुल है क्योंकि उसे मालूम है सत्ता संग्राम में कोई भी जीते वो जब भी चाहेगा उसकी ताजपोशी तय है ! अजब है पर सच है राजनीति के इस अंधे गाँव की उल्टी रीत है ..  वधु के घर से निकाले जाने पर परिवार और रिश्तेदार खुश है और दुश्मन पड़ौसी मातम मना रहे हैं !! जय हो !!   

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह....वर्तमान राजनैतिक परिद्रश्य को आपने अपरोक्ष रूप से बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है,बहुत अच्छा फुर्सत्नमा लिखा आपने
    ...वास्तव में पूरी कमल हवेली के साथ साथ आस पास की बस्ती भी काजल की कोठरी है ,,,जो अन्दर गया वो बिना कलंक के वापस नही आ पाएगा ...और इस बस्ती में तो चाल-चेहरा-और चरित्र सभी में प्रश्नचिन्ह दीखता है...जो दीखता है..वो सत्य होता नही..जो सत्य है वो कभी दिखाया नही जाता...

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  2. वाह वाह....वर्तमान राजनैतिक परिद्रश्य को आपने अपरोक्ष रूप से बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है,बहुत अच्छा फुर्सत्नमा लिखा आपने
    ...वास्तव में पूरी कमल हवेली के साथ साथ आस पास की बस्ती भी काजल की कोठरी है ,,,जो अन्दर गया वो बिना कलंक के वापस नही आ पाएगा ...और इस बस्ती में तो चाल-चेहरा-और चरित्र सभी में प्रश्नचिन्ह दीखता है...जो दीखता है..वो सत्य होता नही..जो सत्य है वो कभी दिखाया नही जाता...

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  3. नाम काल्पनिक पर वास्तविक चित्रण.....बहुत खूब संजय जी.

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  4. कल्‍पनाओं के सहारे वास्‍तविकता की जमीन तैयार कर दी आपने।
    बहुत खूब।

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