शनिवार, 7 जनवरी 2012

खबरें जिन्हे सुर्खियाँ बननी थी पर अफसोस !

कल खबरों की दुनियाँ में रहने वाले लोगों के लिए तीन बड़ी घटनायें घटी लेकिन अफसोस किसी भी बुध्दजीवी द्वारा इसे महत्व नहीं दिया गया ..  सभी लोग जैसे लोकतंत्र के अश्वमेध यज्ञ में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने तो तत्पर बाबूलाल कुशवाहा प्रकरण में लानत मलामत करने में व्यस्त रहे ...  कमोबेश शायद आज भी रहेंगे !  

TRP सिंड्रोम से ग्रस्त मीडिया की अपनी चाल होती है वो शतरंज के घोड़े की तरह मौका देखकर अपनी सुविधानुसार ढाई घर चलता है ! कुशवाहा प्रकरण को मीडिया इवेंट बनाने में नाकाम मीडिया को शाम होते होते TRP की चिंता सताने लगी तो कुछ “काबिल विनोदी ” टाईप के लोगों को जमा कर क्रिकेट के गिरते स्तर और लोकप्रियता पर गंभीर विचार विमर्श चालू किया गया ! देखकर ऐसा लगा मानो क्रिकेट का नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन हो रहा है और इस चारित्रिक पतन से बचने के लिए सहवाग, लक्ष्मण को हटाकर नये कंधो पर विश्वास दिखाने का विधवा प्रलाप वे ही लोग कर रहे थे जो अभी कुछ दिनों पहले तक इन्ही को वेरी वेरी स्पेशियल और भारतीय क्रिकेट के आधार स्तम्भ की पदवी देकर महिमा मण्डन में अपनी सारी उर्जा लगा दिये थे !  

खैर जाने दे इन बातों में मुख्य मुद्दा तो छूट ही गया और वे तीन बड़ी खबरें जो पूरी मीडिया , चौक चौराहों, ड्राईंग रूम, चौपालों में चर्चा की विषयवस्तु होनी थी, अफसोस वो नहीं बन सकी !

वे तीन खबरे हैं  -
1 भँवरी हत्याकाण्ड में सीबीआई को मिले सुराग
2 आरूषि हत्याकाण्ड पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
3 शांतिभूषण का स्टाम्प चोरी का केस  

इन तीनों खबरों में कोई नयापन तो नहीं है किंतु ये सभी प्रकरण देश की दशा दिशा निर्धारित करने वाले लोगों अथवा संस्थाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं इसलिए इसकी अपनी एक महत्ता तो है !  
प्रथम दो खबरों में देश की सर्वोच्च जाँच ऐजेंसी सीबीआई की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न है ! बाबुलाल कुशवाहा प्रकरण पर तो राजनैतिक दल चीख चीख कर कह रहें हैं कि ये राजनीति से प्रेरित है क्या इसलिए कि यू पी चुनावों के मद्देनजर इससे तत्कालिक राजनैतिक फायदा उठाया जाय लेकिन उपरोक्त दोनो खबरों से चुनावों में कोई राजनैतिक लाभ नही मिलता देख सभी राजनैतिक दल चुप है और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने का दावा करने वाली उसकी भाँड मिडिया ने केवल एक बाईट चलाने की रश्म अदायगी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली !   

आरूषि हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जो टिप्पणी की है उसके अत्यंत गंभीर मायने हैं ! ये शाब्दिक और याचिका की दृष्टि से है तो तलवार दम्पत्ति के खिलाफ लेकिन हमें इस कठोर टिप्पणी पर सीबीआई के उस क्लोजर रिपोर्ट पर भी ध्यान देना चाहिए जिसमें सीबीआई ने कहा कि था उसे इस हत्याकांड में किसी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले, इसलिए इस केस को बंद कर दिया जाए। अब देखना ये है कि सीबीआई का इस मामले में आगे रवैय्या क्या रहता है ! इसी प्रकार सुस्त रफ्तार से चल रहे एक राजनैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भंवरी मामले में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान जब नवम्बर माह में हाईकोर्ट ने सीबीआई से फटकार लगाकर कहा था कि इस मामले की जांच अनंतकाल तक जारी नहीं रखी जा सकती और  अदालत ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि इस प्रकरण का हश्र भी कहीं नोएडा के आरुषि  मामले जैसा नहीं हो जाए तब सीबीआई ने मामले की  जाँच में तेजी लाई और नतीजतन कल उसे नहर से कुछ अस्थियाँ और अन्य सामग्री मिली है ! 

इन दोनों प्रकरणों में एक सामान्य तथ्य यह उभरकर आता है कि क्या हर मामले में कोर्ट के फटकार लगाने के बाद ही सीबीआई की नींद खुलती है और वास्तविक जाँच चालू होती है ! जैसा कि पूर्व में टेलीकाम घोटाले में भी देखा गया है ! विचारणीय प्रश्न यही है कि जब सीबीआई स्वतंत्र है और उसमें जाँच अधिकारी भी वहीं हैं तो इन अधिकारियों को कोर्ट से फटकार लगाये जाने तक कुम्भकरणीय निद्रा में जाने की प्रेरणा कौन देता है !  

तीसरी खबर शांतिभूषण के स्टाम्प चोरी मामले का है जिसमें उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्टाम्प कोर्ट ने टीम अन्ना के सदस्य और वकील शांति भूषण पर स्टाम्प चोरी के मामले में जुर्माना लगाया है। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए असिस्टेंट स्टाम्प कमीश्नर ने शांतिभूषण पर 27 लाख 22 हजार 88 रूपये का जुर्माना लगाया है। इसके अलावा 1.34 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी पर 1.5 फीसदी की दर से ब्याज देने को कहा गया है। 

आर्थिक रूप से यह मामला तो बिल्कुल निजी और सामान्य मामला है किंतु जनलोकपाल के संदर्भ में इसकी भूमिका काफी अहम है ! सर्वप्रथम आप इस प्रकरण के मूल तथ्यों को जान लें तो मामले को समझने में आसानी होगी  !   

इलाहाबाद में सिविल लाइंस के एल्गिन रोड के बंगला नंबर 77/29 में शान्ति भूषण बरसों से किराए पर रह रहे थे, उस बंगले की 7818 वर्ग मीटर जमीन 29 नवम्बर 2010 को शान्ति भूषण ने महज एक लाख रूपए में खरीद ली। जबकि उस दौरान मिनिमम सर्किल रेट के हिसाब से इस जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ रूपए थी।  एग्रीमेंट और बैनामे में शान्ति भूषण ने कुल मिलाकर 46 हजार रूपए की स्टाम्प ड्यूटी अदा की थी। सर्किल रेट के हिसाब से इस जमीन को खरीदने पर एक करोड़ 33 लाख 54 हजार 600 रूपए की स्टाम्प ड्यूटी जमा की जानी चाहिए थी। मामला सामने आने के बाद रजिस्ट्री विभाग ने जमीन के ओरिजनल कागजात जब्त करते हुए शान्ति भूषण के खिलाफ स्टाम्प एक्ट की धारा 33/47 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।

अब हरीशचंद्र के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले शांति भूषण ये कह रहे हैं कि ये मामला राजनीति से प्रेरित है इसे वे कोर्ट में चुनौती देगे ! ये उनका संवैधानिक अधिकार है लेकिन एक बात तो किसी भी व्यक्ति को समझ आ जायेगी कि भले ही 2010 में इलाहाबाद में प्रापर्टी का मूल्य कुछ भी रहा हो लेकिन लगभग 8 हजार वर्ग मीटर जमीन पर निर्मित बंगले की कीमत कम से कम बारह रूपये वर्ग मीटर तो नहीं हो सकती ! इस कीमत पर तो एक छोटे से गाँव में भी मासिक किराये पर भी मकान भी नहीं मिलते ! बहरहाल ये बचकाना हरकत है और निश्चित रूप से कर चोरी का सत्यापित मामला है ! 

अब शायद देश का प्रथम ईमानदार व्यक्ति होने का दावा करने वाले केजरीवाल को शांतिभूषण के लिए कोई फाईनेंसियल टेक्नीकल इरेग्यूलिरीटी जैसा भारी भरकम जुमला याद ना आ रहा हो शायद इसिलिए शुतुरमुर्ग की तरह शांत मुँह गड़ाये खड़ा है ! लेकिन उससे भी बड़ी आश्चर्य की बात ये है कि आधी रात को नींद में भी अन्ना को कोसने वाले झण्डाबरदार राजनेता इस मामले में मौन व्रत धारण किये हुए हैं ! शायद उन्हे इस बात का संतोष है कि मुम्बई में अन्ना का मीडिया शो फ्लाफ रहा और किसी रहस्यमय कमजोरी के कारण अन्ना व उसकी टीम चुनावों में जनजागृति नहीं करेगी ! अत: वर्तमान में हो रहे चुनावों में उनसे कोई राजनैतिक नुकसान नहीं है ! सही है यदि अपने निजी सामाजिक मान्यता प्राप्त माँ बाप के मरने से भी यदि कोई राजनैतिक फायदा नहीं होता है तो इन राजनेताओं को वो असामयिक बेकार की घटना ही लगती है !  

मेरी ये बातें साहित्य की दृष्टि से तुच्छ हो तथा वातानुकूलित उच्च वर्गीय बौध्दिक श्रेणी के चिंतकों के लिए कोई अर्थ,  कोई स्थान, कोई सम्मान भले ना रखती हों किंतु इसकी प्रासंगिकता तो जरूर है ऐसा मुझे लगता है ! हो सकता है मैं गलत हूँ किंतु यदि आपके पास अपने अमूल्य समय में थोड़ी गुंजाईश हो तो आप इसे पढ़कर चाहे वो मुझे लानत मलामत ही क्यूँ ना हो , अपनी राय तो दे ही सकते है !! जय हो !!

5 टिप्‍पणियां:

  1. aap ko net par lagatar pad raha hun..mai jagdalpur se hun..milte hai kabhi

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  2. मेरा भी मानना है मुद्दों का इक्को होना जरूरी है होता अक्सर ये है की एक नया गरम मुद्दा आकार अक्सर पुराने मुद्दे को सुला देता है साथ ही मेरा यह मानना है की समाचार के दोनों पहलू को सामने लाया जाय . सही और गलत का फैसला पाठक के ऊपर छोड़ दिया जाय ना की सूचना पूर्वाग्रह से ग्रसित हो ..अच्छा मुद्दा आपने उठाया , धन्यवाद - सुनील गुप्ता , चिरमिरी

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  3. निश्चित रूप से ये तीनो विषय गम्भीर थे पर मिडिया ने उचित स्थान नहीं दिया टी आर पी के दौड़ में न्यूज़ चैनलों ने पत्रकारिता के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया अब भारत में लोकतंत्र के चारो स्तम्भ केवल एक दुशरे की जवाब देहि तय करने में लगा हुवा है शायद देश के पतन का मुख्य कारण यही है

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  4. आपकी बातों से पूरी तरह सहमत

    तीनों गंभीर मुद्दे थे जिन पर लंबी बात की जा सकती थी मीडिया में पर अफसोस कि टीआरपी के चक्‍कर में क्रिकेट पर ऐसी बहस शुरू की कि खत्‍म होने का नाम नहीं ले रही थीं........
    बेहतरीन पोस्‍ट।

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  5. बिलकुल सही मुद्दे पर लिखा है आपने..आपसे पूरी तरह सहमत हूँ मैं,,,
    साकेत शर्मा(बचेली)

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